الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 10214 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

فانظر إلى ما تحت هذا من المعنى اللطيف قال بعضهم

و تخللت مسلك الروح مني *** و بذا سمي الخليل خليلا

و قال ما ثم إلا أسماؤه و ليست سواه و ما هي دلائل عليه بل هي عينه و قد تخللها المتخلق الكامل فهو الخليل و قال اللّٰه الصاحب و أنت الخليل و قال نال محمد ﷺ الخلة و الوسيلة بدعاء أمته و لذلك أمرهم بالصلاة عليه كما صلى على إبراهيم و أمرهم أن يسألوا له الوسيلة و جعل الجزاء الشفاعة و قال كل خليل صاحب و ما كل صاحب خليل و قال المرء على دين خليله فلينظر أحدكم من يخالل فلينظر أحدكم من يخالل أي على عادته و خلقه و أنت خليل الحق فهو على ما أنت عليه لهذا وصف نفسه بما أنت عليه من الفرح و التبشيش و التعجب و الضحك و جميع ما ورد عنه مما هو لك

[الكلام بعد الموت هل هو بحرف و صوت]

و من ذلك الكلام بعد الموت هل هو بحرف و صوت من الباب 379 قال الكلام بعد الموت بحسب الصورة التي ترى نفسك فيها فإن اقتضت الحرف و الصوت كان الكلام كذلك و إن اقتضت الصوت بلا حرف كان و إن اقتضت الإشارة أو النظرة أو ما كان فهو ذلك و إن اقتضت الذات أن تكون عين الكلام كان فإن جميع ذلك كله تقتضيه تلك الحضرة و إن رأيت نفسك في صورة إنسان حزت جميع المراتب في الكلام فإنه العام الجامع أحكام الصور و قال ﴿وَ إِنْ مِنْ شَيْءٍ إِلاّٰ يُسَبِّحُ بِحَمْدِهِ وَ لٰكِنْ لاٰ تَفْقَهُونَ تَسْبِيحَهُمْ﴾ [الإسراء:44] يعني بالنظر العقلي فالكل ناطق و تقع العين على ناطق و صامت فالمؤمن يدرك ذلك إيمانا و صاحب الكشف يدرك الكيفية و الكشف منحة من اللّٰه يمنحها من شاء من عباده و قال كل نطق في الوجود تسبيح و إن انطلق عليه اسم الذم و بعلم هذا فضلنا غيرنا بحمد اللّٰه

[ما يختص بالدنيا من أحكام الرؤيا]



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!