الفتوحات المكية

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[من بلي بالأشد في تحرى الأسد]

و من ذلك من بلي بالأشد في تحرى الأسد من الباب 319 أصدق القول ما جاء في الكتب المنزلة و الصحف المطهرة المرسلة و مع تنزيهها الذي لا يبلغه تنزيه نزلت إلى التشبيه الذي لا يماثله تشبيه فنزلت آياته بلسان رسوله و بلغ رسوله بلسان قومه و ما ذكر صورة ما جاء به الملك و هل هو أمر ثالث ليس مثلهما أو هو مشترك و على كل حال فالمسألة فيها إشكال لأن العبارات لحننا و الكلام لله ليس لنا فما هو المنزل و المعاني لا تنزل إن كانت العبارات فما هو القول الإلهي و إن كان القول فما هو اللفظ الكياني و هو اللفظ بلا ريب فأين الشهادة و الغيب إن كان دليلا فكيف هو ﴿أَقْوَمُ قِيلاً﴾ [المزمل:6] و ما ثم قيل إلا هذا القيل و هو معلوم عند علماء الرسوم فتحقق و لا تنطق

[العصمة في الإلقاء باللقاء]

و من ذلك العصمة في الإلقاء باللقاء من الباب 320 هو الحافظ بالحرس فهو الملحوظ في العسس لأن الحليم الأواه لا يعلم حافظا سواه لكن يعطيه الأدب أن لا يظهر من النسب سوى نسب التقوى و فيه رائحة الحراسة و الحفظ الأقوى فقد صرح و إن لم يتكلم و قد أبهم فيما أعلم و ما أوهم و لما أقام العصمة مقام الحرس لم يجنح إلى العسس و طالما كان يقول من يحرسنا الليلة مع علمه بأن المقدور كائن و الحارس ليس بمانع ما قدر و لا صائن لكن طلب المعبود بذل المجهود و هو يفعل ما يشاء و هذا من الأمور التي شاء و ما يشاء إلا ما علم و ما علم إلا ما أعطاه الذي هو ثم

[كيف للخلق برد دعوة الحق]

و من ذلك كيف للخلق برد دعوة الحق من الباب 321 صورته ردت عليه و بضاعته ردت إليه ما أشبه ذلك بالصدى إذا ظهر بدا فتخيل الصيت أنه غيره و ما هو إلا عينه و أمره و ما هو الصدى في كل مكان كذلك ما هذا الإدراك لكل إنسان بل ذلك عن استعداد خاص غيره منه في مناص و إن كان من أهل المباص الحق و إن كان واحدا فالاعتقادات تنوعه و تفرقة و تجمعه و تصوره و تصنعه و هو في نفسه لا يتبدل و في عينه لا يتحول و لكن هكذا يبصره بالعضو الباصر في هذه المناظر فيحصره الأين و يحده الانقلاب من عين إلى عين فلا يحار فيه إلا النبيه و لا يتفطن إلى هذا التنبيه إلا من جميع بين التنزيه و التشبيه و إما من نزه فقط أو من شبه فقط فهو صاحب غلط و هو كصورة خيال بين العقل و الحس و ما للخيال محل إلا النفس فإنها البرزخ الجامع للفجور و التقوى المانع



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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