الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

﴿إِلاّٰ هِيَ أَكْبَرُ مِنْ أُخْتِهٰا﴾ [الزخرف:48] و إن تولدت عنها و قامت لها مقام بنتها فقد يكون في الشاهد الولد أعظم في القدر من الوالد و أما في الغائب فهو غير صائب إلا في موصع واحد و هو ما تولد عندك من معرفتك بربك عند معرفتك بنفسك و إن كان ليس من جنسك فذلك العلم لهذا العلم كالولد و هو أعظم قدرا من الوالد عند كل أحد و ما سوى هذا و أمثاله في الغائب فليس بصائب فلا تقس الغائب على الشاهد في كل موطن فإنه مذهب فاسد يرحم اللّٰه أبا حنيفة و وقاه من كل خيفة حيث لم ير الحكم على الغائب و هو عندي من أسد المذاهب و أحوط من جميع الجوانب

[رتبة وحي المنام من الكلام]

و من ذلك رتبة وحي المنام من الكلام من الباب 195 النبوة في المبشرات مخبوءة فمن لا مبشرة له لا نبوة له و إن لم تكن نبوة مكملة و إن كانت بالمقام الرفيع و هو التشريع و لكن إذا تحقق الرائي لديه من يوحي بذلك إليه حينئذ يعول عليه فإن أوحي به الرسول فله أن يقتصر بذلك على نفسه و يقول فإن تحقق عند السامع حقه و ثبت عنده صدقه تعين في ذلك اتباعه و حرم عليه تراعه فإن كان ناسخا لحكم ثبت بخبر الواحد فالأخذ به معين عند الواجد و بقي النظر و التكلمة في المقلد له فإن كانت العدالة على السواء فصاحب الرؤيا أولى بمحجة الاهتداء فحكم وحي المنام بشرائطه حكم اليقظان بالدليل النقلي و البرهان و هو بمنزلة لصاحب في السماع و التابع إياه بمنزلة الاتباع فإن كان الموحى بذلك الحق تعالى أو الملك إليه فتناوله بحسب الصورة التي نزل بها عليه و لا يتخذ ذلك شرعا يتعبده و إن كان يحمده و هذه فائدة سرجها متوقدة من شجرة مباركة من تشاجر الأسماء و يكفيك هذا الإيماء فاعمل بحسبه و اعلم قدر منصبه

[نظم السلوك في مسامرة الملوك]



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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