Les révélations mecquoises: futuhat makkiyah

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futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 840 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

لو لا الشريعة كان المسك يخجل من *** أعرافها هكذا يقضي به نظري

إذا كان مستند التكوين أجمعه *** له فلا فرق بين النفع و الضرر

فالزم شريعته تنعم بها سورا *** تحلها صور تزهو على سرر

مثل الملوك تراها في أسرتها *** أو كالعرائس معشوقين للبصر

[النيات و الأعمال]

«روينا من حديث رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم أنه قال إنما الأعمال بالنيات و إنما لامرئ ما نوى فمن كانت هجرته إلى اللّٰه و رسوله فهجرته إلى اللّٰه و رسوله و من كانت هجرته لدنيا يصيبها أو امرأة يتزوجها فهجرته إلى ما هاجر إليه» رواه عمر بن الخطاب رضي اللّٰه عنه

[النية واحدة من حيث ذاتها مختلفة و متعددة من حيث منوياتها]

اعلم أن لمراعاة النيات رجالا على حال مخصوص و نعت خاص أذكرهم إن شاء اللّٰه و أذكر أحوالهم و النية لجميع الحركات و السكنات في المكلفين للأعمال كالمطر لما تنبته الأرض فالنية من حيث ذاتها واحدة و تختلف بالمتعلق و هو المنوي فتكون النتيجة بحسب المتعلق به لا بحسبها فإن حظ النية إنما هو القصد للفعل أو تركه و كون ذلك الفعل حسنا أو قبيحا و خيرا أو شرا ما هو من أثر النية و إنما هو من أمر عارض عرض ميزه الشارع و عينه للمكلف فليس للنية أثر البتة من هذا الوجه خاصة كالماء إنما منزلته أن ينزل أو يسبح في الأرض و كون الأرض الميتة تحيا به أو ينهدم بيت العجوز الفقيرة بنزوله ليس ذلك له فتخرج الزهرة الطيبة الريح و المنتنة و الثمرة الطيبة و الخبيثة من خبث مزاج البقعة أو طيبها أو من خبث البزرة أو طيبها قال تعالى ﴿يُسْقىٰ بِمٰاءٍ وٰاحِدٍ وَ نُفَضِّلُ بَعْضَهٰا عَلىٰ بَعْضٍ فِي الْأُكُلِ﴾ [الرعد:4]



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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