Les révélations mecquoises: futuhat makkiyah

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﴿رَبُّ الْعَرْشِ الْكَرِيمِ﴾ [المؤمنون:116] فاستوى عليه القرآن الكريم و قال "ذو العرش المجيد" في قراءة من خفض و جعله نعتا للعرش فاستوى عليه القرآن المجيد فعظم العرش القلبي و مجد و كرم لعظم القرآن و كرمه و مجده فجاء بثلاثة نعوت للقرآن لما هو عليه الأمر في نفسه من التثليث و قد تقدم الكلام قبل هذا في غير هذا الباب في الاسم الفرد و أن له في المرتبة الأولى التي يظهر فيها وجود عينه مرتبة الثلاثة فهي أول الأفراد فلتنظر هناك رتبة التثليث في العالم و قد تقدم لنا شعر في التثليث في بعض منظومنا نشير به إلى هذا المعنى و هو في ديوان ترجمان الأشواق لنا و أول المقطوعة

بذي سلم و الدير من حاضري الحمى *** ظباء تريك الشمس في صور الدمي

فارقب أفلاكا و أخدم بيعة *** و أحرس روضا بالربيع منمنما

فوقتا اسمي راعي الظبي بالفلا *** و وقتا اسمي راهبا و منجما

إلى آخر القصيدة و شرحناها عند شرحنا لديوان ترجمان الأشواق و قد علمت يا ولي حدوث نزول القرآن المطلق على القلب من غير تقييد و إنه الذكر الذي آتاه من الرحمن و لكن ما أعرض عنه كما أعرض من تولى عن ذكره تعالى بل تلقاه بالقبول و الترحيب فقال له أهلا و سهلا و مرحبا فرد بتأهيل و سهل و مرحب و جعل قلبه عرشا له فاستوى عليه بحكمه و أما إذا أتاه القرآن من ربه فإنه القرآن المقيد بالصفات التي ذكرناها فيتلقاه أيضا هذا العبد كما تلقاه من الرحمن بأهل و سهل و مرحب و يجعل قلبه عرشا له من حيث تلك الصفة المعينة فيكسوه القرآن صفة ما جاء به من عظمة أو مجد أو كرم فظهرت صورة القرآن في مرآة هذا القلب فوصف القلب بما وصف به القرآن فإن كان نزوله بصفة العظمة أثر في القلب هيبة و جلالا و حياء و مراقبة و حضورا و إخباتا و انكسارا و ذلة و افتقارا و انقباضا و حفظا و مراعاة و تعظيما لشعائر اللّٰه و انصبغ القرآن كله عنده بهذه الصفة فأورثه ذلك عظمة عند اللّٰه و عند أهل اللّٰه و لم يجهل أحد من المخلوقات عظمة هذا الشخص إلا بعض الثقلين لأنهم ما سمعوا نداء الحق عليه بالتعريف و «قد ورد عن رسول اللّٰه ﷺ أنه قال إذا أحب اللّٰه عبدا قال لجبريل إني أحب فلانا فيحبه جبريل ثم يأمره أن يعلم بذلك أهل السماء فيقول ألا إن اللّٰه تعالى قد أحب فلانا فأحبوه فيحبه أهل السماء كلهم ثم يوضع له القبول في الأرض»



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