Les révélations mecquoises: futuhat makkiyah

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[أما الكرامة المعنوية]

و أما الكرامة المعنوية فلا يعرفها إلا الخواص من عباد اللّٰه و العامة لا تعرف ذلك و هي أن تحفظ عليه آداب الشريعة و أن يوفق لإتيان مكارم الأخلاق و اجتناب سفسافها و المحافظة على أداء الواجبات مطلقا في أوقاتها و المسارعة إلى الخيرات و إزالة الغل و الحقد من صدره للناس و الحسد و سوء الظن و طهارة القلب من كل صفة مذمومة و تحليته بالمراقبة مع الأنفاس و مراعاة حقوق اللّٰه في نفسه و في الأشياء و تفقد آثار ربه في قلبه و مراعاة أنفاسه في خروجها و دخولها فيتلقاها بالأدب إذا وردت عليه و يخرجها و عليها خلعة الحضور فهذه كلها عندنا كرامات الأولياء المعنوية التي لا يدخلها مكر و لا استدراج بل هي دليل على الوفاء بالعهود و صحة القصد و الرضي بالقضاء في عدم المطلوب و وجود المكروه و لا يشاركك في هذه الكرامات إلا الملائكة المقربون و أهل اللّٰه المصطفون الأخيار و أما الكرامات التي ذكرنا أن العامة تعرفها فكلها يمكن أن يدخلها المكر الخفي

[أن الكرامة لا بد أن تكون نتيجة عن استقامة]

ثم إنا إذا فرضناها كرامة فلا بد أن تكون نتيجة عن استقامة أو تنتج استقامة لا بد من ذلك و إلا فليست بكرامة و إذا كانت الكرامة نتيجة استقامة فقد يمكن أن يجعلها اللّٰه حظ عملك و جزاء فعلك فإذا قدمت عليه يمكن أن يحاسبك بها و ما ذكرناه من الكرامات المعنوية فلا يدخلها شيء مما ذكرناه فإن العلم يصحبها و قوة العلم و شرفه تعطيك أن المكر لا يدخلها فإن الحدود الشرعية لا تنصب حبالة للمكر الإلهي فإنها عين الطريق الواضحة إلى نيل السعادة و العلم يعصمك من العجب بعملك فإن العلم من شرفه أنه يستعملك و إذا استعملك جردك منه و أضاف ذلك إلى اللّٰه و أعلمك أن بتوفيقه و هدايته ظهر منك ما ظهر من طاعته و الحفظ لحدوده فإذا ظهر عليه شيء من كرامات العامة ضج إلى اللّٰه منها و سأل اللّٰه ستره بالعوائد و أن لا يتميز عن العامة بأمر يشار إليه فيه ما عدا العلم لأن العلم هو المطلوب و به تقع المنفعة و لو لم يعمل به فإنه لا يستوي ﴿اَلَّذِينَ يَعْلَمُونَ وَ الَّذِينَ لاٰ يَعْلَمُونَ﴾ [الزمر:9] فالعلماء هم الآمنون من التلبيس فالكرامة من اللّٰه تعالى بعباده إنما تكون للوافدين عليه من الأكوان و من نفوسهم لكونهم لم يروا وجه الحق فيهما فأسنى ما أكرمهم به من الكرامات العلم خاصة لأن الدنيا موطنه و أما غير ذلك من خرق العادات فليست الدنيا بموطن لها و لا يصح كون ذلك كرامة إلا بتعريف إلهي لا بمجرد خرق العادة و إذا لم تصح إلا بتعريف إلهي فذلك هو العلم فالكرامة الإلهية إنما هي ما يهبهم من العلم به عزَّ وجلَّ سئل أبو يزيد عن طي الأرض فقال ليس بشيء فإن إبليس يقطع من المشرق إلى المغرب في لحظة واحدة و ما هو عند اللّٰه بمكان و سئل عن اختراق الهواء فقال إن الطير يخترق الهواء و المؤمن عند اللّٰه أفضل من الطير فكيف يحسب كرامة من شاركه فيها طائر و هكذا علل جميع ما ذكرناه ثم قال إلهي إن قوما طلبوك لما ذكروه فشغلتهم به و أهلتهم له اللهم مهما أهلتني لشيء فأهلني لشيء من أشيائك يقول من أسرارك فما طلب إلا العلم لأنه أسنى تحفة و أعظم كرامة و لو قامت عليك به الحجة فإنه يجعلك تعترف و لا تحاج فإنك تعلم ما لك و ما عليك و ما له و ما أمر اللّٰه تعالى نبيه ﷺ أن يطلب منه الزيادة من شيء إلا من العلم لأن الخير كله فيه و هو الكرامة العظمى و البطالة مع العلم أحسن من الجهل مع العمل و أسباب حصول العلم كثيرة و لا أعني بالعلم إلا العلم بالله و الدار الآخرة و ما تستحقه الدار الدنيا و ما خلقت له و لأي شيء وضعت حتى يكون الإنسان من أمره على بصيرة حيث كان فلا يجهل من نفسه و لا من حركاته شيئا و العلم صفة إحاطية إلهية فهي أفضل ما في فضل اللّٰه كما قال ﴿وَ عَلَّمْنٰاهُ مِنْ لَدُنّٰا عِلْماً﴾ [الكهف:65]



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