Les révélations mecquoises: futuhat makkiyah

Volume number (out of 37): [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 2417 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

ما يملكه الإنسان من أعماله ينقسم قسمين قسم يختص بنفسه و قسم يختص بجوارحه و الزكاة التي تجب عليه في عمله هو ما فرض اللّٰه عليه من أعماله مندوبها و مباحها فإذا لم يؤد زكاة ماله نظر اللّٰه في أعماله التي عملها في الوقت الذي وجب عليه فيه أداء فرض اللّٰه فإن كان من مكارم الأخلاق لم يجازه عليها بما يستحقه من الثواب و مسك ذلك الثواب عنه عن زكاة عمل وقته و إن كان من سفسافها ضاعف عليه الوزر فإنه صاحب عمل مذموم في حال تركه لأداء ما وجب عليه فجمع بين أمرين مذمومين عمل و ترك و إن كان في فعل مباح أخذ بترك الواجب خاصة

[أخذ شطر المال من مانع الزكاة]

و أما أخذ شطر عمله فهو الشطر الذي يتصور فيه الدعوى و هو العمل فإن التكليف ينقسم إلى عمل و ترك فالترك لا دعوى فيه فيبقى العمل فيأخذه الحق منه بالحجة بأن اللّٰه هو الفاعل لذلك العمل فإذا كوشف بهذا لم يبق له على ما يطلب جزاء إذا الجزاء من كونه عاملا و قد تبين له أن العامل هو اللّٰه فيبقى في الحيرة إلى أن يمتن اللّٰه عليه إما بعد العقوبة أو قبل العقوبة فيغفر له فهذا شطر ماله الذي يؤخذ منه في الدار الآخرة حيث يتصور الحساب

(وصل في فصل رضي العامل على الصدقة)

«ذكر الحارث بن أبي أسامة في مسنده عن أنس قال أتى رجل من بنى سليم فقال يا رسول اللّٰه إذا أديت الزكاة إلى رسولك فقد برئت منها إلى اللّٰه و رسوله فقال رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم نعم إذا أديتها إلى رسولي فقد برئت منها و لك أجرها و إثمها على من بدلها» و «ذكر أبو داود من حديث جابر أن رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم قال سيأتيكم ركب مبغضون فإذا جاءوكم فرحبوا بهم و خلوا بينهم و بين ما يبتغون فإن عدلوا فلا نفسهم و إن ظلموا فعليها و أرضوهم فإن» «تمام زكاتكم رضاهم و ليدعوا لكم» و «في حديثه أيضا عن بشير بن الخصاصية قال فقلنا يا رسول اللّٰه إن أصحاب الصدقة يعتدون علينا أ فنكتم من أموالنا بقدر ما يعتدون علينا قال لا»



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


Veuillez noter que certains contenus sont traduits de l'arabe de manière semi-automatique!