Les révélations mecquoises: futuhat makkiyah

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

(اعتبار الباطن في ذلك)

لا مالك إلا اللّٰه و من ملكه اللّٰه إذا كان ما ملكه بيده بحيث يمكنه التصرف فيه فحينئذ تجب عليه الزكاة بشرطها و لا مراعاة لما مر من الزمان فإن الإنسان ابن وقته ما هو لما مضى من زمانه و لا لما يستقبله و إن كان له أن ينوي في المستقبل و يتمنى في الماضي و لكن في زمان الحال هذا كله فهو من الوقت لا من الماضي و لا من المستقبل

[لا مراعاة لما مر على المال من الزمان]

فلا مراعاة لما مر على ذلك المال من الزمان حين كان بيد المديان فإنه على الفتوح مع اللّٰه تعالى دائما الذي بيده المال هو اللّٰه فالزكاة واجبة فيه لما مر عليه من السنين «قال رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم حجي عن أبيك و أمر صلى اللّٰه عليه و سلم ولي الميت بما على الميت من صيام رمضان» و ما هو إلا إيصال ثمرة العمل لمن حج عنه أو صام عنه مما هو واجب عليه إلا أن فرط فله حكم آخر

[من حج عنه أو عمل عنه عمل ما]

و مع هذا فمن حج عنه أو عمل عنه عمل ما فهو صدقة من عمل هذا العمل على المعمول عنه ميتا كان المعمول عنه أو غير ميت غير أن الحي لا يسقط عنه الواجب عليه إلا إذا لم يستطع فعله فإن فعله وليه عنه كان له أجر من أدى ما وجب عليه و ليس ذلك إلا في الحج بما ذكرناه و الثواب ما هو له بقابض إلا إن كان المعمول عنه ميتا فإنه أخراوي فإن كان حيا فالقابض عنه الوكيل و هو اللّٰه فإذا قبضه أعطاه في الآخرة لمن عمل له هنا في الدنيا

(وصل من اعتبار هذا الباب)

و من اعتبار الشخص يتمنى أن لو كان له مال لعمل به برا فيكتب اللّٰه له أجر من عمل فإن نيته خير من عمله و يكتب له على أوفى حظ و هو في ذمة الغير ليس بيده منه شيء فإذا حصل له ما تمناه من المال أو مما تمناه مما يتمكن له به الوصول إلى عمل ذلك البر وجب عليه أن يعمل ذلك البر الذي نواه فإن لم يفعل لم يكتب له أجر ما نواه فلو مات قبل اكتساب ما تمنى كتب له أجر ما نواه قال تعالى



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