Les révélations mecquoises: futuhat makkiyah

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(وفق مخطوطة قونية)

إلى سبعة آلاف إلى سبعين ألفا إلى سبعمائة ألف إلى ما لا نهاية له و لكن من حساب السبعة و إنما كانت الفروض المقدرة في الفلك الأطلس اثني عشر فرضا لأن منتهى أسماء العدد إلى اثني عشر اسما و هو من الواحد إلى العشرة إلى المائة و هو الحادي عشر إلى الألف و هو الثاني عشر و ليس وراءه مرتبة أخرى و يكون التركيب فيها بالتضعيف إلى ما لا نهاية له بهذه الأسماء خاصة

[دولة القرار و الاستقرار بعد ذبح كبش الموت بين الجنة و النار]

و يدخل الناس الجنة و النار و ذلك في أول الحادية إحدى عشرة درجة من الجوزاء و تستقر كل طائفة في دارها و لا يبقى في النار من يخرج بشفاعة و لا بعناية إلهية و يذبح الموت بين الجنة و النار و يرجع الحكم في أهل الجنة بحسب ما يعطيه الأمر الإلهي الذي أودع اللّٰه في حركات الفلك الأقصى و به يقع التكوين في الجنة بحسب ما تعطيه نشأة الدار الآخرة فإن الحكم أبدا في القوابل فإن الحركة واحدة و آثارها تختلف بحسب القوابل و سبب ذلك حتى لا يستقل أحد من الخلق بفعل و لا بأمر دون مشاركة فيتميز بذلك فعل اللّٰه الذي يفعل لا بمشاركة من فعل المخلوق فالمخلوق أبدا في محل الافتقار و العجز و اللّٰه الغني العزيز و يكون الحكم في أهل النار بحسب ما يعطيه الأمر الإلهي الذي أودعه اللّٰه تعالى في حركات الفلك الأقصى و في الكواكب الثابتة و في سباحة الدراري السبعة و المطموسة الأنوار فهي كواكب لكنها ليست بثواقب فالحكم في النار خلاف الحكم في الجنة فيقرب حكم النار من حكم الدنيا فليس بعذاب خالص و لا بنعيم خالص و لهذا قال تعالى ﴿لاٰ يَمُوتُ فِيهٰا وَ لاٰ يَحْيىٰ﴾ [ طه:74] فلم يخلصه إلى أحد الوجهين و كذلك



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