الفتوحات المكية

استعراض الفقرات الفصل الأول في المعارف الفصل الثانى في المعاملات الفصل الرابع في المنازل
مقدمات الكتاب الفصل الخامس في المنازلات الفصل الثالث في الأحوال الفصل السادس في المقامات
الجزء الأول الجزء الثاني الجزء الثالث الجزء الرابع

الفتوحات المكية - طبعة بولاق الثالثة (القاهرة / الميمنية)

الباب:
فى معرفة مراتب الحروف والحركات من العالم وما لها من الأسماء الحسنى ومعرفة الكلمات ومعرفة العلم والعالم والمعلوم
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
 

الصفحة 79 - من الجزء الأول (عرض الصورة)


futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة  - من الجزء

عين الأخ الثاني فكما يفرق البصر بينهما والعلم كذلك يفرق العلم بينهما في الحروف عند أهل الكشف من جهة الكشف وعند النازلين عن هذه الدرجة من جهة المقام التي هي بدل عن حروفه ويزيد صاحب الكشف على العالم من جهة المقام بأمر آخر لا يعرفه صاحب علم المقام المذكور وهو مثلا قلت إذا كررته بدلا من اسم بعينه فتقول لشخص بعينه قلت كذا وقلت كذا فالتاء عند صاحب الكشف التي في قلت الأول غير التاء التي في قلت الثاني لأن عين المخاطب تتجدد في كل نفس بل هم في لبس من خلق جديد فهذا شأن الحق في العالم مع أحدية الجوهر وكذلك الحركة الروحانية التي عنها أوجد الحق تعالى التاء الأولى غير الحركة التي أوجد عنها التاء الأخرى بالغا ما بلغت فيختلف معناها بالضرورة فصاحب علم المقام يتفطن لاختلاف علم المعنى ولا يتفطن لاختلاف التاء أو أي حرف ضميرا كان أو غير ضمير فإنه صاحب رقم ولفظ لا غير كما تقول الأشاعرة في الأعراض سواء فالناس مجمعون معهم على ذلك في الحركة خاصة ولا يصلون إلى علم ذلك في غير الحركة فلهذا أنكروه ولم يقولوا به ونسبوا القائل بذلك إلى الهوس وإنكار الحس وحجبوا عن إدراك ضعف عقولهم وفساد محل نظرهم وقصورهم عن التصرف في المعاني فلو حصل لهم الأول عن كشف حقيقي من معدنه لانسحبت تلك الحقيقة على جميع الأعراض حكما عاما لا يختص بعرض دون عرض وإن اختلفت أجناس الأعراض فلا بد من حقيقة جامعة وحقيقة فاصلة وهكذا هذه المسألة التي ذكرناها في حق من قال بما قلناه فيها ومن أنكره‏

[مطلوب المحققين في الصور المحسة]

فليس المطلوب عند المحققين الصور المحسوسة لفظا ورقما وإنما المطلوب المعاني التي تضمنها هذا الرقم أو هذا اللفظ وحقيقة اللفظة والمرقوم عينها فإن الناظر في الصور إنما هو روحاني فلا يقدر أن يخرج عن جنسه فلا تحجب بأن ترى الميت لا يطلب الخبز لعدم السر الروحاني منه ويطلبه الحي لوجود الروح فيه فتقول نراه يطلب غير جنسه فاعلم إن في الخبز والماء وجميع المطاعم والمشارب والملابس والمجالس أرواحا لطيفة غريبة هي سر حياته وعلمه وتسبيحه ربه وعلو منزلته في حضرة مشاهدة خالقه وتلك الأرواح أمانة عند هذه الصور المحسوسة يؤدونها إلى هذا الروح المودع في الشبح أ لا ترى إلى بعضهم كيف يوصل أمانته إليه الذي هو سر الحياة فإذا أدى إليه أمانته خرج إما من الطريق الذي دخل منه فيسمى قيئا وقلسا وإما من طريق آخر فيسمى عذرة وبولا فما أعطاه الاسم الأول إلا السر الذي أداه إلى الروح وبقي باسم آخر يطلبه من أجله صاحب الخضراوات والمدبرين أسباب الاستحالات هكذا يتقلب في أطوار الوجود فيعرى ويكتسي ويدور بدور الأكرة كالدولاب إلى أن يشاء الله العليم الحكيم فالروح معذور في تعشقه بهذه المحسوسات فإنه عاين مطلوبه فيها فهي في منزل محبوبه‏

أمر على الديار ديار سلمي *** أقبل ذا الجدار وذا الجدارا

وما حب الديار مضى بقلبي *** ولكن حب من سكن الديارا

وقال أبو إسحاق الزوالي رحمه الله‏

يا دار إن غزالا فيك تيمني *** لله درك ما تحويه يا دار

لو كنت أشكو إليها حب ساكنها *** إذن رأيت بناء الدار ينهار

فافهموا فهمنا الله وإياكم سرائر كلمه وأطلعنا وإياكم على خفيات غيوب حكمه‏

[معاني عالم الحروف‏]

أما قولنا الذي ذكرناه بعد كل حرف فأريد إن أبينه لكم حتى تعرفوا منه ما لا ينفركم عما لا تعلمون فأقل درجات الطريق التسليم فيما لا تعلمه وأعلاه القطع بصدقه وما عدا هذين المقامين فحرمان كما إن المتصف بهذين المقامين سعيد قال أبو يزيد البسطامي لأبي موسى يا أبا موسى إذا لقيت مؤمنا بكلام أهل هذه الطريقة قل له يدعو لك فإنه مجاب الدعوة وقال رويم من قعد مع الصوفية وخالفهم في شي‏ء مما يتحققون به نزع الله نور الايمان من قلبه «شرح» فمن ذلك قولنا حرف كذا باسمه كما سقته هو من عالم الغيب فاعلم إن العالم على بعض تقاسيمه على قسمين بالنظر إلى حقيقة ما معلومة عندنا «قسم يسمى عالم الغيب» وهو كل ما غاب عن الحس ولم تجر العادة بأن يدرك الحس له وهو من الحروف السين والصاد والكاف والخاء المعجمة والتاء باثنتين من فوق والفاء والشين والهاء والثاء بالثلاث والحاء وهذه حروف الرحمة والألطاف‏


مخطوطة قونية
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 295 من مخطوطة قونية
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 296 من مخطوطة قونية
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 297 من مخطوطة قونية
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 298 من مخطوطة قونية
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 299 من مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لطبعة القاهرة (دار الكتب العربية الكبرى) - المعروفة بالطبعة الميمنية. وقد تم إضافة عناوين فرعية ضمن قوسين مربعين.

 

الصفحة 79 - من الجزء الأول (اقتباسات من هذه الصفحة)

[الباب: 560] - فى وصية حكمية ينتفع بها المريد السالك والواصل ومن وقف عليها إن شاء الله تعالى (مقاطع فيديو مسجلة لقراءة هذا الباب)

البحث في كتاب الفتوحات المكية

الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!