Les révélations mecquoises: futuhat makkiyah

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(وفق مخطوطة قونية)

و بعد ثبوت الكمال فلا يقبل الزيادة فإن الزيادة في الدين نقص من الدين و ذلك هو الشرع الذي لم يأذن به و اللّٰه و من الورث المعنوي ما يفتح عليك به من الفهم في الكتاب و في حركات العالم كله و أما الورث الإلهي فهو ما يحصل لك في ذاتك من صور التجلي الإلهي عند ما يتجلى لك فيها فإنك لا تراه إلا به فإن الحق بصرك في ذلك الموطن و لا يتكرر عليك صورة تجل فقد انتقل عنها و حصل لك نظيرها في ذاتك و في ملكك و لذلك تقول في الآخرة عموما للشيء إذا أردته ﴿كُنْ فَيَكُونُ﴾ [البقرة:117] و في الدنيا خصوصا فالحق لك في الدنيا محل تكوينك فإنه يتنوع لتنوعك و في الآخرة تتنوع لتنوعه فهو في الدنيا يلبس صورتك و أنت في الآخرة تلبس صورته فانظر ما أعجب هذا الأمر و كذلك لك في الميراث الإلهي في مراتب العدد فقد يكون الحق رابع ثلاثة فإذا جئت أنت و انضممت إلى الثلاثة فربعتهم لا يكون ذلك لك حتى ينتقل الحق إلى مرتبة الخمسة فيكون خامس أربعة بعد ما قد كان رابع ثلاثة فأخلي لك المرتبة فورثتها و كذلك في كل جماعة تنضم إليها هذا حكم الميراث في الدنيا و أما في ميراث الخصوص و في الآخرة فإنه رابع أربعة في حال كونك أنت رابع تلك الأربعة فإنك في الدنيا في الخصوص جئت بصورة حق و في الآخرة كذلك أنت صورة حق و لهذا كفر أي ستر من قال ﴿إِنَّ اللّٰهَ ثٰالِثُ ثَلاٰثَةٍ﴾ [المائدة:73] فستر نفسه بربه لأنه هو عين ثالث الثلاثة و رأى نفسه حقا لا خلقا إلا من حيث الصورة الجسدية لا من حيث ما هي به موصوفة فهو حق في خلق فستر خلقه بما شهده من الحق القائم به المنصوص عليه في العموم بأنه جميع قوى عبده و صفاته إذا كان من أهل الخصوص فقال عن نفسه



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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