Les révélations mecquoises: futuhat makkiyah

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فهذا قد ذكرنا بعض ما وصل إلينا من قولهم في الجمع و جمع الجمع و الجمع عندنا أن تجمع ما له عليه مما وصفت به نفسك من نعوته و أسمائه و تجمع مالك عليك مما وصف الحق به نفسه من نعوتك و أسمائك فتكون أنت أنت و هو هو و جمع الجمع أن تجمع ما له عليه و ما لك عليه و ترجع الكل إليه ﴿وَ إِلَيْهِ يُرْجَعُ الْأَمْرُ كُلُّهُ﴾ [هود:123] ﴿أَلاٰ إِلَى اللّٰهِ تَصِيرُ الْأُمُورُ﴾ [الشورى:53] فما في الكون إلا أسماؤه و نعوته غير أن الخلق ادعوا بعض تلك الأسماء و النعوت و مشي الحق دعواهم في ذلك فخاطبهم بحسب ما ادعوه فمنهم من ادعى في الأسماء المخصوصة به تعالى في العرف و منهم من ادعى في ذلك و في النعوت الواردة في الشرع مما لا يليق عند علماء الرسوم إلا بالمحدثات و أما طريقنا فما ادعينا في شيء من ذلك كله بل جمعناها عليه غير أنا نبهنا أن تلك الأسماء حكم آثار استعداد أعيان الممكنات فيه و هو سر خفي لا يعرفه إلا من عرف إن اللّٰه هو عين الوجود و أن أعيان الممكنات على حالها ما تغير عليها وصف في عينها و يكفي العاقل السليم العقل قولهم الجمع فإنه لفظ مؤذن بالكثرة و التمييز بين الأعيان الكثيرة فمن حيث التمييز كان الجمع عين التفرقة و ليست التفرقة عين الجمع إلا تفرقة أشخاص الأمثال فإنه جمع و تفرقة معا و إن الحد و الحقيقة بجمع الأمثال كالإنسانية و أشخاص ذلك النوع يتصفون بالتفرقة فزيد ليس بعمرو و إن كان كل واحد منهما إنسانا و هكذا جميع الأمثال و أشخاص النوع الواحد قال تعالى ﴿لَيْسَ كَمِثْلِهِ شَيْءٌ﴾ [الشورى:11] على وجوه كثيرة قد علم اللّٰه ما يؤول إليه قول كل متاول في هذه الآية و أعلاها قولا أي ليس في الوجود شيء يماثل الحق أو هو مثل للحق إذ الوجود ليس غير عين الحق فما في الوجود شيء سواه يكون مثلا له أو خلافا هذا ما لا يتصور فإن قلت فهذه الكثرة المشهودة قلنا هي نسب أحكام استعدادات الممكنات في عين الوجود الحق و النسب ليست أعيانا و لا أشياء و إنما هي أمور عدمية بالنظر إلى حقائق النسب فإذا لم يكن في الوجود شيء سواه فليس مثله شيء لأنه ليس ثم فافهم و تحقق ما أشرنا إليه فإن أعيان الممكنات ما استفادت إلا الوجود و الوجود ليس غير عين الحق لأنه يستحيل أن يكون أمرا زائدا ليس الحق لما يعطيه الدليل الواضح فما ظهر في الوجود بالوجود إلا الحق فالوجود الحق و هو واحد فليس ثم شيء هو له مثل لأنه لا يصح أن يكون ثم وجودان مختلفان أو متماثلان فالجمع على الحقيقة كما قررناه أن تجمع الوجود عليه فيكون هو عين الوجود و تجمع حكم ما ظهر من العدد و التفرقة على أعيان الممكنات إنها عين استعداداتها فإذا علمت هذا فقد علمت معنى الجمع و جمع الجمع و وجود الكثرة و ألحقت الأمور بأصولها و ميزت بين الحقائق و أعطيت كل شيء حكمه كما أعطى الحق كل شيء خلقه فإن لم تفهم الجمع كما ذكرناه فما عندك خبر منه و أما إشارات الطائفة التي سردناها فإن لهم في ذلك مقاصد أذكرها إن شاء اللّٰه مع معرفتهم بما ذهبنا إليه أو معرفة الأكابر منهم و أما قول من قال منهم إن الجمع حق بلا خلق فهو ما ذهبنا إليه أن الحق هو عين الوجود غير أنه ما تعرض لما أعطته استعدادات أعيان الممكنات في وجود الحق حتى اتصف بما اتصفت به و أما قول الدقاق في الجمع إنه ما سلب عنك فإنه يقتضي مقامه أن يريد سلب ما وقعت فيه الدعوى منك و هو له كالتخلق بالأسماء الحسنى و نسبة الأفعال إليك و هي له هذا يعطيه حال الدقاق لا الكلام فإنه لو قال غيره هذه الكلمة ربما قالها على أنه يريد بقوله ما سلب عنك عين الوجود فإنه الذي سلب عنك إذ كان عين الوجود و أما قول الآخر إن الجمع ما أشهدك الحق من فعله بك حقيقة فإنه يريد أنك محل لجريان أفعاله و الأمر في الحقيقة بالعكس بل هو المنعوت بحكم آثار استعدادات أعيان الممكنات فيه إلا أن يريد بقوله من فعله بك أي بك ظهر الفعل و لم يتعرض لذكر فيمن ظهر الأثر فقد يمكن أن يريد ذلك و هو ما ذهبنا إليه و ما تعطيه الحقائق فلو علمنا من هو صاحب هذا القول حكمنا عليه بحاله كما حكمنا علي الدقاق لمعرفتنا بمقامه و حاله و أما قول من قال الجمع مشاهدة المعرفة

[أن المعرفة بالله يؤدى أن العبد عمل عملا صحيحا]



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