Les révélations mecquoises: futuhat makkiyah

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

يقول العارف الجامع لأكمل الصلوات إذا رفع رأسه من الركوع سمع اللّٰه لمن حمده نيابة عن ربه سبحانه و مترجما عنه فإنه من كلام ربه تبارك و تعالى ثم يسكت ثم يقول يرد على نفسه بلسانه اللهم ربنا و لك الحمد و ذلك أنه «ورد في الحديث الصحيح عن رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم إذا قال الإمام سمع اللّٰه لمن حمده فقولوا اللهم ربنا و لك الحمد فإن اللّٰه قال على لسان عبده سمع اللّٰه لمن حمده» فلهذا يستحب للمنفرد أن يسكت سكتة يفصل بها بين قوله سمع اللّٰه لمن حمده و بين قوله اللهم ربنا و لك الحمد ملء السموات و ملء الأرض و ملء ما بينهما و ملء ما شئت من شيء بعد أهل الثناء و المجد أحق ما قال العبد و كلنا لك عبد لا مانع لما أعطيت و لا معطي لما منعت و لا ينفع ذا الجد منك الجد كما أنه يقول في حال ركوعه بعد قوله فيه سبحانه ربي العظيم و بحمده ثلاث مرات إن كان منفردا أو مأموما و إن كان إماما فإنه يقولها خمس مرات ليدرك المأموم أنه يقولها ثلاثا ثم يقول بعد هذا التسبيح اللهم لك ركعت و بك آمنت و لك أسلمت خشع لك سمعي و بصري و مخي و عظمي و عصبي اعلم أن العبد إذا ركع فقد أعلمتك أنه في حال برزخي بين القيام و السجود فيقول العارف بعد تسبيحه ربه بالتعظيم كما أوردناه يقول اللهم لك ركعت أي من أجل عزك و علوك في كبريائك خضعت تعظيما لك يقول لقيوميتك التي لا تنبغي إلا لك فإني لما قمت بين يديك لم أقم إلا امتثالا لأمرك حيث قلت ﴿وَ قُومُوا لِلّٰهِ﴾ [البقرة:238] فقمت و أنا أخضع في ركوعي من خاطر ربما خطر لي في حال قيامي إني قمت لنفسي فاعترف بين يديك بركوعي إني لك ركعت و بك آمنت يقول بسببك أي بتأييدك صدقت لا بحولي و لا بقوتي أي لا حول لي و لا قوة إلا بك إذ كانت القلوب بيدك التي هي محل الايمان و لك أسلمت أي من أجلك كان انقيادي و لولاك ما تغيرت أحوالي معك في عباداتي فإنك الذي شرعت لي ذلك على لسان رسولك فعلا و قولا صلى اللّٰه عليه و سلم فصلى و ذكر ثم أمرنا



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