الفتوحات المكية

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الفتوحات المكية - طبعة بولاق الثالثة (القاهرة / الميمنية)

الباب:
فى الصوم
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الصيام في السفر

واسم رمضان يطلبه بتنفيذ الحكم فيه إلى انقضاء شهر سلطانه والسفر يحكم عليه بالانتقال الذي هو عدم الثبوت على الحال الواحدة فبطل حكم الاسم الإلهي رمضان في حق المسافر الصائم ومن قال إنه يجزيه جعل سفره في قطع أيام الشهر وجعل الحكم فيه الاسم رمضان فجمع بين السفر والصوم وأما حكم انتقاله المسمى سفرا فإنه ينتقل من صوم إلى فطر ومن فطر إلى صوم وحكم رمضان لا يفارقه ولهذا شرع صيامه وقيامه ثم جواز الوصال فيه أيضا مع انتقاله من ليل إلى نهار ومن نهار إلى ليل وحكم رمضان منسحب عليه ولهذا أجزأ المسافر صوم رمضان‏

[المرض يضاد الصحة والمطلوب من الصوم الصحة]

وأما المريض فحكمه غير حكم المسافر في الاعتبار فإن العلماء أجمعوا على إن المريض إن صام رمضان في حال مرضه أجزأه والمسافر ليس كذلك عندهم فضعف استدلالهم بالآية فاعتباره إن المرض يضاد الصحة والمطلوب من الصوم صحته والضدان لا يجتمعان فلا يصح المرض والصوم واعتبرناه في شهر رمضان دون غيره لأنه واجب بإيجاب الله ابتداء فالذي أوجبه هو الذي رفعه عن المريض فلا يصح أن يرجع ما ليس بواجب من الله واجبا من الله في حال كونه ليس بواجب‏

(وصل في فصل من يقول إن صوم المسافر والمريض يجزيهما في شهر رمضان فهل الفطر لهما أفضل أم الصوم)

فمن قائل إن الصوم أفضل ومن قائل إن الفطر أفضل ومن قائل إنه على التخيير فليس أحدهما بأفضل من الآخر

(الاعتبار)

من اعتبر أن الصوم لا مثل له وأنه صفة للحق قال إنه أفضل ومن اعتبر أنه عبادة فهو صفة ذلة وافتقار فهو بالعبد أليق قال إن الفطر أفضل ولا سيما للسالك والمريض فإنهما محتاجان إلى القوة ومنبعها الفطر عادة فالفطر أفضل ومن اعتبر أن الصوم من الاسم الإلهي رمضان وأن الفطر من الاسم الإلهي الفاطر وقال لا تفاضل في الأسماء الإلهية بما هي أسماء للاله تعالى قال ليس أحد الاسمين بأفضل من الآخر لأن المفطر في حكم الفاطر والصائم في حكم الرفيع الدرجات وحكم الممسك وحكم اسم رمضان وهذا مذهب المحققين رفع الشريف والأشرف والوضيع والشريف الذي في مقابلته من العالم الذي هو عبارة عن كل ما سوى الله تعالى‏

(وصل في فصل هل الفطر الجائز للمسافر هل هو في سفر محدود أو غير محدود)

فمن قائل إنه يفطر في السفر الذي يقصر فيه الصلاة وذلك على حسب اختلافهم في هذه المسألة ومن قائل إنه يفطر في كل ما ينطلق عليه اسم سفر وبه أقول‏

(الاعتبار في ذلك)

المسافرون إلى الله وهو الاسم الجامع وهو الغاية المطلوبة والأسماء الإلهية في الطريق إليه كالمنازل للمسافرين ومنازل القمر المقدرة لسير القمر في الطريق إلى غاية مقصوده وأقل السفر الانتقال من اسم إلى اسم فإن وجد الله في أول قدم من سفره كان حكمه بحسب ذلك وقد انطلق عليه أنه مسافر وليس لأكثره عندنا نهاية ولا حد

لقوله صلى الله عليه وسلم في دعائه اللهم إني أسألك بكل اسم سميت به نفسك أو علمته أحدا من خلقك أو استأثرت به في علم غيبك‏

فهذا اعتبار من قال يفطر فيما ينطلق عليه اسم سفر

[الأحدية أو الواحد لا حكم له أو لها في العدد]

ومن قال بالتحديد في ذلك فاعتباره بحسب ما حدد فمن اعتبر الثلاثة في ذلك كان كمن قال الأحدية أو الواحد لا حكم له في العدد وإنما العدد من الاثنين فصاعدا والسفر هنا إلى الاسم الله ولا سفر إليه إلا به فأول ما يلقاه من كونه مسافرا إليه في الفردية وهي الثلاثة أول الأفراد فهذا هو السفر المحدود ثم يؤخذ الاعتبار في تحديد العلماء تقصير الصلاة في باب الصلاة من هذا الكتاب وإنا قد ذكرناه في صلاة القصر من هذا الكتاب‏

(وصل في فصل المرض الذي يجوز فيه الفطر)

فمن قائل المرض هو الذي يلحق من الصوم فيه مشقة وضرر ومن قائل إنه المرض الغالب ومن قائل إنه أقل ما ينطلق عليه اسم مرض وبه أقول وهو مذهب ربيعة بن أبي عبد الرحمن‏

(الاعتبار)

المريد تلحقه المشقة وهو صاحب مكايدة وجهد ومن أجل ذلك شرع لنا وإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ وقال تعالى واسْتَعِينُوا بِالصَّبْرِ والصَّلاةِ فيعينه الاسم القوي على ما هو بصدده فهذا مرض يوجب الفطر

[الإنسان لا يخلو عن ميل بالضرورة]

وأما من اعتبر المرض بالميل وهو الذي ينطلق عليه اسم مرض وهو مذهب محمد بن عبد الجبار النفري صاحب المواقف من رجال الله كذا أحسبه والإنسان لا يخلو عن ميل بالضرورة فإنه بين حق وخلق وبين حق وحق من حيث الأسماء الإلهية وكل طرف يدعوه إلى نفسه فلا بد له من الميل‏


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[الباب: 560] - فى وصية حكمية ينتفع بها المريد السالك والواصل ومن وقف عليها إن شاء الله تعالى (مقاطع فيديو مسجلة لقراءة هذا الباب)

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