الفتوحات المكية

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الفتوحات المكية - طبعة بولاق الثالثة (القاهرة / الميمنية)

الباب:
فى أسرار الطهارة
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هو في علمه بتنزيه خالقه فأخرجه بالقول والذكر من القوة إلى الفعل فربما أثر ذلك في نفوس السامعين ممن كان لا يعتقد في الله أنه بذلك النعت من التنزيه‏

[العبد حجاب على الحق‏]

فالعبد حجاب على الحق فإن ظاهر الآثار إنما تدرك في العموم وتنسب للأسباب التي وضعها الحق ولهذا يقول العبد فعلت وصنعت وصمت وصليت ويضيف إلى نفسه جميع أفعاله كلها لحجابه عن خالقها فيه ومنه ومجريها فكما صار الخف حجابا بين المتوضئ وبين إيصال الوضوء إلى الرجل وانتقل حكم الطهارة إلى الخف كذلك تنزيه الإنسان خالقه وهو الطهارة والتقديس لما لم يتمكن في نفس الأمر إيصال أثر ذلك التنزيه إلى الحق لأنه منزه لذاته انتقل حكم أثر ذلك التنزيه إلى الإنسان المنزه الذي هو حجاب على خالقه من حيث إن للتنزيه العملي أثرا في المنزه وقبله الإنسان كما قبل الخف الطهارة بالمسح المشروع فيكون العبد هو الذي نزه نفسه عن الجهل الذي قام بنفس الجاهل الذي نسب إلى الحق ما لا يليق به ولا تقبله ذاته‏

[مشهد من قال: سبحاني‏]

يقول الله في الخبر الصحيح إنه رجل العبد التي يسعى بها والحس إنما يبصر العبد يسعى برجله فلما لبس الخف وهو عين ذات العبد انتقل حكم الطهارة إليه إنما هي أعمالكم ترد عليكم‏

فمتعلق الحكم الخف ومن هذا الباب كان جواز المسح على الإطلاق سفرا وحضرا فالحضر منه هو التنزيه الذي يعود عليك فتقول سبحاني في هذه الحالة كما نقل عن رجال الله فكان مشهد من قال سبحاني هذا المقام الذي ذكرناه والسفر هو التنزيه الذي ينتقل من تلفظك به في التعليم إلى سمع المتعلم السامع فيؤثر في نفس السامع حصول ذلك العلم فتطهر محله‏

[قرائن الأحوال تعين ما كان مبهما بالاشتراك‏]

من الجهل الذي كان عليه في تلك المسألة هذا القدر من انتقاله من العالم المعلم إلى المتعلم يسمى سفرا لأنه أسفر له بهذا التعليم بما هو الأمر عليه فطهر محله ومن هذا الباب أيضا إن لباس الخف وما في معناه من جرموق وجورب مما يلبس ويستر حد الوضوء من الرجل عرفا وعادة ولما كان من أسماء الرجل في اللسان القدم كان هذا مما يقوي القدمية في القدم إذ كان القدم يقال في اللسان بالاشتراك إذ هو عبارة عن الثبوت يقال لفلان في هذا الأمر سابقة قدم يريد أن له أساسا ثابتا قديما في هذا الأمر كما يقال في الرجل بالاشتراك أيضا أعني إطلاق هذه اللفظة في اللسان يقال رجل من جراد أي قطعة وجماعة من جراد فإذا قال قائل إن الرجل يسخن بالخف يعلم قطعا أنه يريد العضو الخاص المعروف فقرائن الأحوال ودلالات الألفاظ بالصفات تعين ما كان مبهما بالاشتراك فانتقل حكم الطهارة إلى الخف بعد ما كان متعلقها الرجل ولكن إذا كان ملبوسا فيطهر مما يمكن أن يتعلق به مما يمنع من ذلك حكما وعينا

[نسبة القدم والهرولة إلى الله‏]

وكذلك لما نسب القدم إلى الله تعالى في حديث يضع الجبار فيها قدمه ربما وقع في نفس بعض العقلاء أن نسبة القدم إلى الله تعالى ما هو على حد ما ينسب إلى الإنسان أو لكل ذي رجل وقدم وأن المراد به مثلا أمر آخر وغفلوا عن أقدام المتجسدين من الأرواح فأزال الله سبحانه هذا التوهم من القائل به بما نسب إلى نفسه من الهرولة التي هي الإسراع في المشي مع تقدم وصف القدم فالحق بمن يمشي على رجلين لا بمن يمشي على البطن مع التحقق ب لَيْسَ كَمِثْلِهِ شَيْ‏ءٌ لا بد من ذلك‏

[الله هو المجهول الذي لا يعرف‏]

فلا نصفه ولا ننسب إليه إلا ما نسبه إلى نفسه أو وصف نفسه به فما نسب الهرولة إليه إلا ليعلم أنه أراد القدم الذي يقبل صفة السعي وحكمه على ما يليق بجلاله لأنه المجهول الذي لا يعرف ولا يقال هو النكرة التي لا تتعرف قال تعالى ولا يُحِيطُونَ به عِلْماً

[معقولية القدم والهرولة]

وما نقول أراد بنسبة القدم ما عينته المنزهة على زعمها واقتصرت عليه فجاء بالهرولة لإثبات القدمية وأقامه مقام الخف للقدم في إزالة الاشتراك المتوهم فانتقل التنزيه إلى الهرولة من القدم وقد كان القائل بالتنزيه مشتغلا بتنزيه القدم فلما جاءت الهرولة انتقل التنزيه إليها كما انتقل حكم طهارة القدم إلى الخف فنزه العبد ربه عن الهرولة المعتادة في العرف وإنها على حسب ما يليق بجلاله سبحانه فإنه لا يقدر أن لا يصفه بها إذ كان الحق أعلم بنفسه وقد أثبت لنفسه هذه الصفة فمن رد نسبتها إليه فليس بمؤمن ولكن الذي يجب عليه أن يرد العلم بها إلى الله أعني علم النسبة وأما معقولية الهرولة فما خاطب أهل اللسان إلا بما يعقلونه فالهرولة معقولة وصورة النسبة مجهولة وكذلك جميع ما وصف به نفسه مما توصف به المحدثات‏

[جواز انتقال الطهارة من محل إلى آخر]

وليس الغرض مما ذكرنا إلا جواز انتقال الطهارة من محل إلى محل آخر بضرب من المناسبة والشبه وإنما قلنا بالجواز لا بالوجوب فإن الوجوب يناقض الجواز ولصاحب الخف أن يجرد خفه ويغسل رجليه شرعا أو يمسحها بالماء على ما يقتضيه مذهبه في ذلك ولا مانع له من ذلك وكذلك هذا العاقل قد يبقى على تنزيهه للقدم ولا ينتقل إلى الهرولة


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