Mekkeli Fetihler: futuhat makkiyah

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(وفق مخطوطة قونية)

﴿أَ تَعْبُدُونَ مٰا تَنْحِتُونَ﴾ [الصافات:95] فكان من فتوته إن باع نفسه في حق أحدية خالقه لا في حق خالقه لأن الشريك ما ينفي وجود الخالق و إنما يتوجه على نفي الأحدية فلا يقوم في هذا المقام إلا من له القطبية في الفتوة بحيث يدور عليه مقامها*

[فتوة فتى موسى ع]

و من الفتوة قوله تعالى و إذ قال موسى لفتاه فأطلق عليه باللسان العبراني معنى يعبر عنه في اللسان العربي بالفتى و كان في خدمة موسى عليه السلام و كان موسى في ذلك الوقت حاجب الباب فإنه الشارع في تلك الأمة و رسولها و لكل أمة باب خاص إلهي شارعهم هو حاجب ذلك الباب الذي يدخلون منه على اللّٰه تعالى و محمد صلى اللّٰه عليه و سلم هو حاجب الحجاب لعموم رسالته دون سائر الأنبياء عليهم السلام فهم حجبته صلى اللّٰه عليه و سلم من آدم عليه السلام إلى آخر نبي و رسول

[الأنبياء حجبة النبي محمد ﷺ قبل زمان بعثته]

و إنما قلنا إنهم حجبته «لقوله صلى اللّٰه عليه و سلم آدم فمن دونه تحت لوائي» فهم نوابه في عالم الخلق و هو روح مجرد عارف بذلك قبل نشأة جسمه «قيل له متى كنت نبيا فقال كنت نبيا و آدم بين الماء و الطين» أي لم يوجد آدم بعد إلى أن وصل زمان ظهور جسده المطهر صلى اللّٰه عليه و سلم فلم يبق حكم لنائب من نوابه من سائر الحجاب الإلهيين و هم الرسل و الأنبياء عليهم السلام إلا عنت وجوههم لقيومية مقامه إذ كان حاجب الحجاب فقرر من شرعهم ما شاءه بإذن سيده و مرسله و رفع من شرعهم و أمر يرفعه و نسخه فربما قال من لا علم له بهذا الأمر إن موسى عليه السلام كان مستقلا مثل محمد بشرعه «فقال رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم لو كان موسى حيا ما وسعه إلا أن يتبعني»



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