Mekkeli Fetihler: futuhat makkiyah

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(وفق مخطوطة قونية)

و العالمون هنا هو الدلالات على اللّٰه فهو يقول في هذه الآية إنه غني عن الدلالات عليه فرفع إن يكون بينه و بين العالم نسبة و وجه يربطه بالعالم من حيث ذلك الوجه الذي هو منه غني عن العالمين و هو الذي تسميه أهل النظر وجه الدليل يقول الحق ما ثم دليل علي فيكون له وجه يربطني به فأكون مقيدا به و أنا الغني العزيز الذي لا تقيدني الوجوه و لا تدل على أدلة المحدثات فدليل الحق على الحق وجود الحق في عين وجود الممكن للممكن من حيث ما هو وجوده وجود عين الحق لا من حيث إنه موجود عن الحق أو مفتقر إلى الحق فإن الممكن لا يفتقر إلا لأمر ممكن يعني أنه يمكن أن يحصل له و يمكن أن لا يحصل و الافتقار إلى الممكن من الممكن محال و الافتقار إلى الواجب بنفسه من الممكن في غير ممكن محال فلا افتقار لممكن و لا لواجب أصلا فالواجب الوجود غني على الإطلاق و الممكن ليس بفقير لممكن على الإطلاق و لا لغير ممكن فإن تحصيل ما ليس بممكن لممكن محال فالحق لا يحصل منه في العبد شيء و لا للعبد منه شيء فالظاهر من الممكنات و أعيانها وجود الحق و الممكنات باقية على أصلها من الإمكان لا تبرح أبدا فمعنى الاستفادة هي دلالة الحق بوجوده عليها لا دلالتها عليه فإنها لا تدل عليه أبدا فالناظر في هذه المسألة يتوهم أن الكون دليل على اللّٰه لكونه ينظر في نفسه فيستدل و ما علم إن كونه ينظر راجع إلى حكم كونه متصفا بالوجود فالوجود هو الناظر و هو الحق فلو لم تتصف ذاته بالوجود فبما ذا كان ينظر فما نظر إلا الحق في الحق فانتج له الحق نفسه فقال عرفت اللّٰه بالله و هو مذهب الجماعة إذا ضربت الواحد في الواحد كان الخارج واحدا فافهم

(فصل بل وصل في التكتيف في الصلاة)

[أقوال الفقهاء في التكليف في الصلاة]



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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