الفتوحات المكية

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قال اللّٰه تعالى ﴿سُبْحٰانَ رَبِّكَ رَبِّ الْعِزَّةِ عَمّٰا يَصِفُونَ﴾ [الصافات:180] قدر الأمر موازنته لمقداره و هذا لا يعلم من الأمر حتى يكون له ما يعادله في ذاته فيكون ذلك المعادل مقدارا له لأنه يزنه فأثبت هذا الذكر لله قدرا لكنه مجهول عند أصحاب هذا الضمير و لا يعرف قدر الحق إلا من عرف الإنسان الكامل الذي خلقه اللّٰه على صورته و هي الخلافة ثم وصف الحق في الصورة الظاهرة نفسه باليدين و الرجلين و الأعين و شبه ذلك مما وردت به الأخبار مما يقتضيه الدليل العقلي من تنزيه حكم الظاهر من ذلك في المحدثات عن جناب اللّٰه فحق قدره إضافة ما أضافه إلى نفسه مما ينكر الدليل إضافته إليه تعالى إذ لو انفرد دون الشرع لم يضف شيئا من ذلك إليه فمن أضاف مثل هذا إليه عقلا فذلك هو الذي ما قدر اللّٰه حق قدره و ما قال أخطأ المضيف و من أضافه شرعا و شهودا و كان ﴿عَلىٰ بَيِّنَةٍ مِنْ رَبِّهِ﴾ [هود:17] فذلك الذي قدر اللّٰه حق قدره فالإنسان الكامل الذي هو الخليفة قدر الحق ظاهرا و باطنا صورة و منزلة و معنى فمن كل شيء في الوجود زوجان لأن الإنسان الكامل و العالم بالإنسان الكامل على صورة الحق و الزوجان الذكر و الأنثى ففاعل و منفعل فيه فالحق الفاعل و العالم منفعل فيه لأنه محل ظهور الانفعال بما يتناوب عليه من صور الأكوان من حركة و سكون و اجتماع و افتراق و من صور الألوان و الصفات و النسب فالعالم قدر الحق وجودا و أما في الثبوت فهو أظهر لحكم الأزل الذي هو للممكنات في ثبوتها لأن الإمكان للممكن نعت ذاتي نفسي و لم يزل الممكن ممكنا في حال عدمه و وجوده فبقاء ما بقي منه في العدم و ما بقي إلا بالمرجح فهو الذي أبقاه لما فيه من قبول الوجود كما هو ممكن مرجح في حال الوجود بالوجود لقبوله العدم بإمساك شرطه المصحح لبقائه فكما سبح اللّٰه نفسه عن التشبيه سبح الممكن نفسه عن التنزيه لما في التشبيه و التنزيه من الحد فهم بين مدخل و مخرج و ما ظفر بالأمر على ما هو عليه إلا من جمع بينهما فقال بالتنزيه من وجه عقلا و شرعا و قال بالتشبيه من وجه شرعا لا عقلا و الشهود يقضي بما جاءت به الرسل إلى أممها في اللّٰه



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