الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 1408 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

[الخافي هو الظاهر]

و هو أن نقول إنما سمي الخف خفا من الخفاء لأنه يستر الرجل مطلقا فإذا انخرق و ظهر من الرجل شيء مسح على ما ظهر منه و مسح على الخف و ذلك ما دام يسمى خفا لا بد من هذا الشرط و فيه سر عجيب للفطن المصيب إن الخافي هو الظاهر أيضا يقول إمرؤ القيس

خفاهن من أنفاقهن

أي أبرزهن و أظهرهن

[ظاهر الشريعة ستر على حقيقة حكم التوحيد]

و إنما قلنا بمسح ما ظهر لأنا قد أمرنا في كتاب اللّٰه بمسح الأرجل فإذا ظهر مسحناه و أما في الباطن فظاهر الشريعة ستر على حقيقة حكم التوحيد بنسبة كل شيء إلى اللّٰه فالطهارة في الشريعة متعلقها و هي أن تصحبها التوحيد بأن تراها حكم اللّٰه في خلقه لا حكم المخلوق مثل السياسات الحكمية

[الشرع حكم اللّٰه لا حكم العقل]

فالشرع حكم اللّٰه لا حكم العقل كما يراه بعضهم فطهارة الشريعة رؤيتها من اللّٰه الواحد الحق و لهذا لا ينبغي لنا أن نطعن في حكم مجتهد لأن الشرع الذي هو حكم اللّٰه قد قرر ذلك الحكم فهو شرع اللّٰه بتقريره إياه و هي مسألة يقع في محظورها أصحاب المذاهب كلهم لعدم استحضارهم لما نبهنا عليه مع كونهم عالمين به و لكنهم غفلوا عن استحضاره فأساءوا الأدب مع اللّٰه في ذلك حين فاز بذلك الأدباء من عباد اللّٰه فمن خطأ مجتهدا بعينه فقد خطأ الحق فيما قرره حكما

[تخطئة القول بنسبة الأفعال كلها إلى اللّٰه من جميع الوجوه]

فإذا انخرق الشرع فظهر في مسألة ما حكم من أحكام التوحيد مما تزيل حكم الشرع مطلقا انتقل الحكم الطهارة ذلك التوحيد المؤثر في إزالة حكم الشريعة كمن ينسب الأفعال كلها إلى اللّٰه من جميع الوجوه فلا يبالي فيما يظهر عليه من مخالفة أو موافقة فمثل هذا التوحيد يجب التنزيه منه لظهور هذا الأثر فإنه خرق للشريعة و رفع لحكم اللّٰه كما لا يجوز المسح مع زوال اسم الخف فإن كان الخرق يبقى اسم الخف عليه كان الحكم كما قررناه من المسح على الخف و مسح ما ظهر من الرجل و هو أن يبين في ذلك التوحيد المعين في هذه المسألة الوجه المشروع و هو أن نقول



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!