The Meccan Revelations: al-Futuhat al-Makkiyya

Volume number (out of 37): [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 9457 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

و لكن في المرتبة الخارجة عن الخيال لا إحاطة له بالمحال مع كون المحال معلوما للعالم غير موصوف بالإحاطة و كذلك الحي لما كانت له درجة الشرطية كان له السببية في ظهور أعيان الأسماء الإلهية و آثارها و كذلك كل علة لا بد أن يكون لها حكم الحياة و حينئذ يكون عنها الأثر الوجودي و لا يشعر بذلك كل أحد من نظار العلماء من أولي الباب إلا أرباب الكشف الذين يعاينون سريان الحياة في جميع الموجودات كلها جوهرها و عرضها و يرون قيام المعنى بالمعنى حتى يقال فيه سواد مشرق و سواد كدر و من لا علم له يجعل الإشراق للمحل لا للسواد و ما عنده خبر فكذلك قيام الحياة بجميع الأعراض قيامها بأعيان الجواهر فما من شيء من عرض و جوهر و حامل و محمول إلا و هو يسبح بحمد اللّٰه و لا يسبح اللّٰه إلا حي عالم بمن يسبح و بما يسبح فيفصل بعلمه بين من ينبغي له التسبيح و بين من ينبغي له التشبيه في العين الواحدة من وجوه مختلفة و هو سبحانه يثني على نفسه و يسبح نفسه بنفسه كما قال ﴿فَإِنَّ اللّٰهَ غَنِيٌّ عَنِ الْعٰالَمِينَ﴾ [آل عمران:97] و قال ﴿وَ أَقْرِضُوا اللّٰهَ قَرْضاً حَسَناً﴾ [الحديد:18] و كل ذلك في معرض الثناء على نفسه ﴿لِمَنْ كٰانَ لَهُ قَلْبٌ أَوْ أَلْقَى السَّمْعَ وَ هُوَ شَهِيدٌ﴾ [ق:37] و من لم يعرف اللّٰه تعالى و العالم بمثل هذه المعرفة فما عنده علم بالله و لا بالعالم و لو لا ما هو الأمر كما قررناه ما «قال رسول اللّٰه ﷺ من عرف نفسه عرف ربه» و أتى بالعامل الذي يتعدى إلى مفعول واحد و لم يقل علم و ذلك ليرفع الإشكال في الأحدية فقد بان لك يا وليي بما فصلناه و أومأنا إليه ما تقتضيه هذه الحضرة حضرة الرفع و التي قبلها حضرة الميزان الذي به يخفض اللّٰه و يرفع و لما كانت للحق الدرجة العليا قال ﴿إِلَيْهِ يَصْعَدُ الْكَلِمُ الطَّيِّبُ وَ الْعَمَلُ الصّٰالِحُ يَرْفَعُهُ﴾ [فاطر:10] فإن الكلمة إذا خرجت تجسدت في صورة ما هي عليه من طيب و خبيث فالخبيث يبقى فيما تجسد فيه ما له من صعود و الطيب من الكلم إذا ظهرت صورته و تشكلت فإن كانت الكلمة الطيبة تقتضي عملا و عمل صاحبها ذلك العمل أنشأ اللّٰه من عمله براقا أي مركوبا لهذه الكلمة فيصعد به هذا العمل إلى اللّٰه صعود رفعة يتميز بها عن الكلم الخبيث كل ذلك يشهده أهل اللّٰه عيانا أو إيمانا فالخلق في كل نفس في تكوين فهم كل يوم في شأن لأنهم في نفس و هو هيولى صور التكوين فالحق في وجود الأنفاس شئونه و التصوير لما هو العبد عليه من الحال في وقت تنفسه فيعطيه الحق النفس الداخل هيولائي الذات فإذا استقر في القلب و أعطى أمانته من التبريد الذي جاء له تشكل و انفتحت في ذات ذلك النفس صورة ما في القلب من الخواطر فيزعجه السحر بعد فتح الصورة فيه على مدرجته خروج انزعاج لدخول غيره لأن السحر و هو الرئة له حفظ هذه النشأة فهو كالروبان بل هو كالحاجب الذي بيده الباب فإذا خرج فلا يخلو إما أن يتلفظ صاحب ذلك النفس بكلام أو لا يتلفظ فإن تلفظ تشكل ذلك الهواء بصورة ما تلفظ به من الحروف فيزيد في صورة ما اكتسبه من القلب و إن لم يتلفظ خرج بالصورة التي قبلها في القلب من الخاطر هكذا الأمر دائما دنيا و آخرة ففي الدنيا يتصور في خبيث و طيب و في الآخرة لا يتصور إلا طيبا لأن حضرة الآخرة تقتضي له الطيب فلا يزال يوجد طيبا بعد طيب حتى يكثر الطيبون فيغلبون على الخبيثين الذين أوردوا صاحبهم الشقاء فإذا كثروا عليهم غلبوهم فازالوا حكمهم فيه فهو المعبر عنه بما لهم إلى الرحمة في جهنم و إن كانوا من أهلها فمن حيث إنهم عمار لا غير فإن رحمة اللّٰه سبقت غضبه و الحكم لله و ما سوى اللّٰه فمجعول و آله العقائد مجعول فما عبد اللّٰه قط من حيث ما هو عليه و إنما عبد من حيث ما هو مجعول في نفس العابد فتفطن لهذا السر فإنه لطيف جدا به أقام اللّٰه عذر عباده في حق من قال فيهم ﴿وَ مٰا قَدَرُوا اللّٰهَ حَقَّ قَدْرِهِ﴾ [الأنعام:91]



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


Please note that some contents are translated from Arabic Semi-Automatically!