The Meccan Revelations: al-Futuhat al-Makkiyya

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﴿مٰا يَأْتِيهِمْ مِنْ ذِكْرٍ مِنَ الرَّحْمٰنِ مُحْدَثٍ﴾ [الشعراء:5]

[أن كل كلام في العالم كلام اللّٰه تعالى]

اعلم أن هذا تنبيه من الحق على إن كل كلام في العالم كلامه لأنه ما أتى من اللّٰه إلينا إلا كل ذكر محدث لأن الإتيان يحدث بلا شك في الآتي و ما أتى إلا من قام به الحادث و ليس إلا الصورة التي يتجلى فيها في أعين الناظرين و يتخلى عنها في أعين الناظرين فما ثم إلا سامع و متكلم و قائل و مقول له و مقول به و مقول و كله حسن إلا أنه بين حسن و أحسن فكل كلام حسن و ما وافق الغرض من القول فهو أحسن فالقول كله حسن و أما قوله ﴿لاٰ يُحِبُّ اللّٰهُ الْجَهْرَ بِالسُّوءِ مِنَ الْقَوْلِ﴾ [النساء:148] فنفى المحبة أن يكون متعلقها الجهر بالسوء من القول و السوء من القول أن يقول في القول إنه سوء و لا قائل به إلا اللّٰه و الجهر بالسوء قد يكون قولا و قد يكون في الأفعال التي لا تكون قولا فيريد بالجهر فيها ظهور الفحشاء من العبد كما «قال ﷺ من بلي منكم بهذه القاذورات فليستتر» يعني لا يجهر بها و السوء على نوعين سوء شرعي و سوء ما يسوؤك و إن حمده الشرع و لم يدمه فقد يكون هذا السوء من كونه يسوءك لا إن السوء فيه حكم اللّٰه كما قال تعالى ﴿وَ جَزٰاءُ سَيِّئَةٍ سَيِّئَةٌ مِثْلُهٰا﴾ [الشورى:40] فالسيئة الأولى شرعية لأنه تعدى و السيئة الأخرى ما يسوء المجازي عليها و ليس الجزاء بسيئة مشروعة لأن اللّٰه لا يشرع السوء و لما وقع الاصطلاح في اللسان على السيئ و الحسن نزل الشرع من عند اللّٰه بحسب التواطؤ فهم سموه سوء و قالوا إن ثم سوء فقال اللّٰه ﴿لاٰ يُحِبُّ اللّٰهُ الْجَهْرَ بِالسُّوءِ مِنَ الْقَوْلِ﴾ [النساء:148] الذي سميتموه سوء لكونه لا يوافق أغراضكم كما «قد سمعت أن حسنات الأبرار سيئات المقربين» و ليس ثم الأحسن بالنسبة سيئ بالنسبة على الحقيقة فكل شيء من اللّٰه حسن ساء ذلك الشيء أم سر فالأمر إضافي فقوله



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