The Meccan Revelations: al-Futuhat al-Makkiyya

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فمن أراد صحبة الحق فليصحبه بحقيقته و جبلته من ذله و افتقاره و من أراد صحبة الخلق فليصحبه بما شرع له ربه لا بنفسه و لا بصورة ربه بل كما قلنا بما شرع له فيعطي كل ذي حق حقه فيكون عبدا في صورة حق أو حقا في صورة عبد كيفما كان لا حرج عليه و لما كان هذا كله مذهب أهل اللّٰه كشف اللّٰه لنا من زيادة العلم التي امتن اللّٰه بها علينا مع مشاركتنا إياهم فيما ذهبوا إليه إن اللّٰه أطلعنا على أن جميع ما يتسمى به العبد و يحق له النعت به و إطلاق الاسم عليه لا فرق بينه و بين ما ينعت به من الأسماء الإلهية فالكل أسماء إلهية فهو في كل ما يظهر به مما ذكروه مما تقتضيه العبودية عندهم و الصورة ليس له و إنما ذلك لله و ما له من نفسه سوى عينه و عينه ما استفادت صفة الوجود إلا منه تعالى فما سماه باسم إلا و هو له تعالى فإذا خرج العبد من جميع أسمائه كلها التي تقتضيها جبلته و الصورة التي خلق عليها حتى لا يبقى منه سوى عينه بلا صفة و لا اسم سوى عينه حينئذ يكون عند اللّٰه من المقربين و وافقنا على هذا القول شيخنا أبو يزيد البسطامي حيث قال و أنا الآن لا صفة لي يعني لما أقامه اللّٰه في هذا المقام فصفات العبد كلها معارة من عند اللّٰه فهي لله حقيقة و نعتنا بها فقبلناها أدبا على علم أنها له لا لنا إذ من حقيقتنا عدم الاعتراض إنما هو التسليم الذاتي المحض لا التسليم الذي هو صفة له فإن ذلك له فإذا كان العبد ما عنده من ذاته سوى عينه بالضرورة يكون الحق جميع صفاته و يقول له أنت عبدي حقا فما سمع سامع في نفس الأمر إلا بالحق و لا أبصر إلا به و لا علم إلا به و لا حي و لا قدر و لا تحرك و لا سكن و لا أراد و لا قهر و لا أعطى و لا منع و لا ظهر عليه و عنه أمر ما هو عينه إلا و هو الحق لا العبد فما للعبد سوى عينه سواء علم ذلك أو جهله و ما فاز العلماء إلا بعلمهم بهذا القدر في حق كل ما سوى اللّٰه لا أنهم صاروا كذا بعد أن لم يكونوا ف‌ ﴿لِمِثْلِ هٰذٰا فَلْيَعْمَلِ الْعٰامِلُونَ﴾ [الصافات:61] و في مثل هذا



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