The Meccan Revelations: al-Futuhat al-Makkiyya

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

على من فحقق ما تقول و إنما *** يقول بهذا ظالم و جهول

فكل مقال فيه غير مقيد *** فكل مقالاتي إليه تئول

فلا ترفع الأستار بيني و بينه *** فذاك وجود ما إليه سبيل

[إن الإنسان ضعيف فقير]

اعلم أيدنا اللّٰه و إياك بروح منه أن الإنسان و إن كان في نفس الأمر عبدا و يجد في نفسه ما هو عليه من العجز و الضعف و الافتقار إلى أدنى الأشياء و التألم من قرصة البرغوث و يعرف هذا كله من نفسه ذوقا و مع هذا فإنه يظهر بالرياسة و التقدم و كلما تمكن من التأثير في غيره فإنه يؤثر و يجد في نفسه طلب ذلك كله و حبه و ذلك لأنه خلقه اللّٰه على صورته و له تعالى العزة و الكبرياء و العظمة فسرت هذه الأحكام في العبد فإنها أحكام تتبع الصورة التي خلق عليها الإنسان و تستلزمها فرجال اللّٰه هم الذين لم يصرفهم خلقهم على الصورة عن الفقر و الذلة و العبودية و إذا وجدوا هذا الأمر الذي اقتضاه خلقهم على الصورة و لا بد ظهروا به في المواطن التي عين الحق لهم أن يظهروا بذلك فيها كما فعل الحق الذي له هذه الصفة ذاتية نفسية فلا يظهر بها إلا في مواطن مخصوصة و يظهر بالنزول و التحبب إلى عباده حتى كأنه فقير إليهم في ذلك و يقيم نفسه مقامهم و إذا كان الحق بهذه الصفة أن ينزل إليكم في صوركم فأنتم أحق بهذا النعت أن لا تبرحوا فيه و لا تنظروا إلى ما تجدونه فيكم من قوة الصورة فذلك له لا لكم كما إن لكم ما نزل إليكم فيه لا له و لو لا إن أسماءه الحسنى قامت بكم و اتصفتم بها ما تمكن لكم ذلك فردوا أسماءه على صورته لا عليكم و خذوا منه ما نزل لكم فيه فإن ذلك نعتكم و أسماؤكم فإنكم إذا فعلتم ذلك وصلتم إليه أي كنتم من أهل القربة فإن المقرب لا يبقى له القرب و الجلوس مع الحق و التحدث معه تعالى اسما إلهيا من الأسماء المؤثرة في العالم و لا من أسماء التنزيه و إنما يدخل عليه بالذلة لشهود عزه و بالفقر لشهود غناه و بالتهيؤ لنفوذ قدرته فينخلع من كل الأسماء التي تعطيه أحكام الصورة التي خلق عليها هذا مذهب سادات أهل الطريق حتى قالوا في ذلك إن صادقين لا يصطحبان إنما يصطحب صادق و صديق و لهذا ما بعث رسول اللّٰه ﷺ بعثا قط و لو كان اثنين إلا قدم أحدهما و جعل الآخر تبعا و إن لم يكن كذلك فسد الأمر و النظام و هو متبع في ذلك حكم الأصل فإنه لو كان مع اللّٰه إله آخر لفسد الأمر و النظام كما قال ﴿لَوْ كٰانَ فِيهِمٰا آلِهَةٌ إِلاَّ اللّٰهُ لَفَسَدَتٰا﴾ [الأنبياء:22]



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