The Meccan Revelations: al-Futuhat al-Makkiyya

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فهو الآخر كما هو الأول و ما بين الأول و الآخر تظهر مراتب الأسماء الإلهية كلها فلا حكم للآخر إلا بالرجوع إليه في كل أمر فإذا كان اللّٰه الأول فالإنسان الكامل هو الآخر لأنه في الرتبة الثانية و هو الخليفة و هو أيضا الآخر بخلقه الطبيعي فإنه آخر المولدات لأن اللّٰه لما أراد به الخلافة و الإمامة بدأ بإيجاد العالم و هياه و سواه و عدله و رتبه مملكة قائمة فلما استعد لقبول أن يكون مأموما أنشأ اللّٰه جسم الإنسان الطبيعي و نفخ فيه من الروح الإلهي فخلقه على صورته لأجل الاستخلاف فظهر بجسمه فكان المسمى آدم فجعله في الأرض لخليفة و كان من أمره و حاله مع الملائكة ما ذكر اللّٰه في كتابه لنا و جعل الإمامة في بنيه إلى يوم القيامة فهو الآخر بالنسبة إلى الصورة الإلهية و الآخر أيضا بالنسبة إلى الصورة الكونية الطبيعية فهو آخر نفسا و جسما و هو الآخر برجوع أمر العالم إليه فهو المقصود به عمرت الدنيا و قامت و إذا رحل عنها زالت الدنيا و مارت السماء و انتثرت النجوم و كورت الشمس و سيرت الجبال و عطلت العشار و سجرت البحار و ذهبت الدار الدنيا بأسرها و انتقلت العمارة إلى الدار الآخرة بانتقال الإنسان فعمرت الجنة و النار و ما بعد الدنيا من دار إلا الجنة و النار فالاسم الأول للأولى و هي الدار الدنيا و الاسم الآخر للأخرى و هي الآخرة و إنما قال اللّٰه تعالى لمحمد ص ﴿وَ لَلْآخِرَةُ خَيْرٌ لَكَ مِنَ الْأُولىٰ﴾ [الضحى:4] لأن الآخر ما و رآه مرمى فهو الغاية فمن حصل في درجته فإنه لا ينتقل فله الثبوت و البقاء و الدوام و الأول ليس كذلك فإنه ينتقل في المراتب حتى ينتهي إلى الآخر و هو الغاية فيقف عنده فلهذا قال له ﴿وَ لَلْآخِرَةُ خَيْرٌ لَكَ مِنَ الْأُولىٰ وَ لَسَوْفَ يُعْطِيكَ رَبُّكَ فَتَرْضىٰ﴾



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