The Meccan Revelations: al-Futuhat al-Makkiyya

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و كالمتكبر في قوله تعالى ﴿اَلْجَبّٰارُ الْمُتَكَبِّرُ﴾ [الحشر:23] فيكون الكبير أفضل من المتكبر لأن الكبير لنفسه هو كبير و المتكبر تعمل في حصول الكبرياء و ما هو بالذات أفضل بما هو بالتعمل فإن التعمل اكتساب و إنما كان التكبر من صفات الحق لما كان من نزوله في الصفات إلى ما يعتقده أصحاب النظر و أكثر الخلق أنه صفة المخلوق فلما علم ذلك منهم و هو سبحانه قد وصف لهم نفسه بتلك الصفات حتى طمعوا فيه و ضل بها قوم عن طريق الهدى كما اهتدى بها قوم في طريق الحيرة قام لهم تعالى في صفة التكبر عن ذلك النزول ليعلمهم أنه و إن اشترك معهم في الاسمية فإن نسبتها إليه تعالى ليست كنسبتها إلى المخلوق فيكون مثل هذا تكبر أو لا يحتاج الكبير إلى هذا كله فتبين لك المفاضلة بين الكبير و المتكبر و أما المفاضلة التي لهذه الكلمة أعني قولك اللّٰه أكبر فهي كلمة مفاضلة على كل اسم من الأسماء الإلهية بما يعطيه فهم الخلق فيه أعني في كل اسم اسم لأن فهم العالم لا بد أن يكون يقصر عما هو الأمر عليه و لا يتمكن أن يقبل توصيل ذلك لو تمكن أن يوصله الحق إليك فنحن لا قوة لنا على التحصيل و لا قوة في نفس الأمر على التوصيل فلا بد من قصور الفهم فتدل لفظة اللّٰه أكبر من كل ما أعطاه فهم من نسبة الكبرياء إلى اللّٰه بأي اسم كان من الأسماء الإلهية بهذا اللفظ و غيره فإن اللّٰه يقال فيه إنه أعظم و أكرم و أجل و أعلى و أرحم و أسرع و أحسن و أحكم و أمثال ذلك مما لا يحصى كثرة أ لا ترى إلى المشركين لما قالوا أعل هبل أعل هبل و هبل اسم صنم كان يعبد في الجاهلية و هو الحجر الذي يطئوه الناس في العتبة السفلي في باب بنى شيبة هو مكبوب على وجهه «فقال النبي ﷺ لأصحابه لما سمع المشركين يقولون ذلك قولوا»



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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