The Meccan Revelations: al-Futuhat al-Makkiyya

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

أي أشغل نفسك بتنزيه ربك و الثناء عليه بما هو أهله فاقتطعه بهذا الأمر من العالم لما كمل ما أريد منه من تبليغ الرسالة و طلب بالاستغفار أن يستره عن خلقه في حجاب صونه لينفرد به دون خلقه دائما فإنه كان في زمان التبليغ و الإرشاد و شغله بأداء الرسالة فإن له وقتا لا يسعه فيه غير ربه و سائر أوقاته فيما أمر به من النظر في أمور الخلق فرده إلى ذلك الوقت الواحد الذي كان يختلسه من أوقات شغله بالخلق و إن كان عن أمر الحق ثم قوله ﴿إِنَّهُ كٰانَ تَوّٰاباً﴾ [النصر:3] أي يرجع الحق إليك رجوعا مستصحبا لا يكون للخلق عندك فيه دخول بوجه من الوجوه و «لما تلا رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم هذه السورة بكى أبو بكر الصديق رضي اللّٰه عنه وحده دون من كان في ذلك المجلس و علم أن اللّٰه تعالى قد نعى إلى رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم نفسه و هو كان أعلم الناس به و أخذ الحاضرون يتعجبون من بكائه و لا يعرفون سبب ذلك»

[الظهور أو التصرف في الكون]

و الأولياء الأكابر إذا تركوا و أنفسهم لم يختر أحد منهم الظهور أصلا لأنهم علموا أن اللّٰه ما خلقهم لهم و لا لأحد من خلقه بالتعلق من القصد الأول و إنما خلقهم له سبحانه فشغلوا أنفسهم بما خلقوا له فإن أظهرهم الحق عن غير اختيار منهم بأن يجعل في قلوب الخلق تعظيمهم فذلك إليه سبحانه ما لهم فيه تعمل و إن سترهم فلم يجعل لهم في قلوب الناس قدرا يعظمونهم من أجله فذلك إليه تعالى فهم لا اختيار لهم مع اختيار الحق فإن خيرهم و لا بد فيختارون الستر عن الخلق و الانقطاع إلى اللّٰه و لما كان حالهم ستر مرتبتهم عن نفوسهم فكيف عن غيرهم تعين علينا أن نبين منازل صونهم

[منازل صون الأولياء]



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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