The Meccan Revelations: al-Futuhat al-Makkiyya

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

فاعلم إن الافتقار في كل ما سوى اللّٰه أمر ذاتي لا يمكن الانفكاك عنه ذوقا و علما صحيحا إلا أنه تختلف مقاصده في تعيين ما يفتقر إليه هذا الفقير و ما هو المعنى الذي يفتقر إليه فيه

[إن الفقر و المسكنة صفة ذاتية]

فاعلم إن الفقر و المسكنة لما ثبت في العلم أنها صفة ذاتية كان متعلقها الذي افتقرت فيه طلبها استمرار كونها و استمرار النعيم لها على أكمل الوجوه بحيث إنه لا يتخلله النقيض فأهل هذه الطريقة لم يروا ذلك حالا و عقدا إلا من اللّٰه تعالى فافتقروا إليه في ذلك دون غيره سبحانه و لا يصح الافتقار لهم إليه في وجودهم لأنهم موجودون و إنما كان ذلك الافتقار منهم لوجودهم في حال عدمهم فلهذا أوجدهم فمتعلق الافتقار أبدا إنما هو العدم ليوجده لهم إذ بيده إيجاد ذلك و أما غيرنا فرأوا ذلك من اللّٰه عقدا لا حالا و هم المسلمون الأكثرون عالمهم و جاهلهم و من الناس من يرى ذلك من اللّٰه أصلا لا عقدا و لا حالا و هم القائلون بالعلل و المعلولات و هم أبعد الطوائف من اللّٰه و من الناس من لا يرى ذلك من اللّٰه لا أصلا و لا عقدا و لا حالا و هم المعطلة و ما من طائفة مما ذكرنا إلا و تجد الافتقار من ذاتها و من المحال أن يقع الغني من اللّٰه لأحد من هؤلاء الطوائف على الإطلاق أبدا و لكن قد يقع لهم الغني المقيد دائما لا ينفكون عنه و أما فرض الطريق إليه فهو ذاتي أيضا من حيث هو طريق و إنما الذي يتعلق به الاكتساب سلوك خاص في هذا الطريق لمن يفتقر إليه و إذا كان السلوك بهذه المثابة تعين التحريض عليه و تبيينه لمن جهله فمن عدل عن تبيينه لمن يستحقه و هو عالم به فهو صاحب حرمان و خذلان و قد نبه عليه السلام على مرتبة من مراتب ذلك «بقوله صلى اللّٰه عليه و سلم من سئل عن علم فكتمه ألجمه اللّٰه بلجام من نار»



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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