The Meccan Revelations: al-Futuhat al-Makkiyya

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(وفق مخطوطة قونية)

إذا الفقير المحقق من لا يقوم به حاجة معينة فتملكه لعلمه بأنه عين الحاجة فلا تقيده حاجة فإن حاجة العالم إلى اللّٰه مطلقة من غير تقييد كما إن غناه سبحانه عن العالم مطلق من غير تقييد من حيث ذاته فهم يقابلون ذاتا بذات و ينسبون إلى كل ذات ما تعطيها حقيقتها و ما أحسن ما شرع في الأذان و الإقامة في قوله حي على الصلاة و لم يقل إلى الصلاة فيقيده بالغاية و من كان معك فلا يكون غايتك و لا تقل حي كلمة إقبال و لا يطلب الإقبال إلا من معرض و كل معرض فاقد قلنا نعم لما كان العبد متحققا بالله كان هو الناظر و المنظور و الشاهد و المشهود و غاب عين العبد و لم يبق إلا الرب و أراد الحق سبحانه أن يشهد العبد عين عبوديته ليعرفه بما أنعم عليه به مما لم يعط ذلك لغيره من العبيد و لا يعرف ذلك حتى يرد لنفسه و مشاهدة عينه مقارنة لمشاهدة ربه و لم يجعل ذلك في شيء من عباداته إلا في الصلاة «فقال قسمت الصلاة بيني و بين عبدي»

[القسم الذي يخص العبد من الصلاة]

فلا بد للمصلي من أجل قسمه من الصلاة أن يقوم فيه إذ لا يليق ذلك لقسم الذي للعبد من الصلاة أن يكون لله فقال له حي على الصلاة أي أقبل على الصلاة من أجل القسم الذي يخصك منها فإعراضه إنما كان عن نفسه لا عن ربه لأن العلم بالله أعطاه ذلك فقال له أقبل على صلاتك لتشهدني و تشهد نفسك فتعرف ما لي و ما لك فتتصف بالحكمة و فصل الخطاب و ترى ما أنت فيه فلم يأت بإلى فإنها أداة تؤذن بالفقد و الأمر في نفسه ليس كذلك فإذا كان الحق يستسقي عبده فالعبد أولى و إذا كان الحق ينوب عن عبده في استسقاء عبده يسقى عبده فالعبد أولى أن يستسقي ربه ليسقى عبده و هو أولى بالنيابة عن مثله من الحق عنه إذ



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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