The Meccan Revelations: al-Futuhat al-Makkiyya

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و قال تعالى ﴿قٰاتِلُوا الَّذِينَ يَلُونَكُمْ مِنَ الْكُفّٰارِ﴾ [التوبة:123] و لا أكفر من النفوس بنعم اللّٰه و لا يلي الإنسان أقرب إليه من نفسه و جهاد النفس أعظم من جهاد العدو لأن الإنسان لا يخرج إلى جهاد العدو إلا بعد جهاده لنفسه و جهاد العدو قد يقع من العبد للرياء و السمعة و الحمية و جهاد النفس أمر باطن لا يطلع عليه إلا اللّٰه كالصوم في الأعمال و أحق بيع النفس من اللّٰه ﴿إِذٰا نُودِيَ لِلصَّلاٰةِ مِنْ يَوْمِ الْجُمُعَةِ﴾ [الجمعة:9] فيترك جميع أغراضه و مراداته و يأتي إلى مثل هذا السوق فيبيع من اللّٰه نفسه و مثل هذا البيع لا يفسخ هذا مذهب من يقول بعدم الفسخ

[اعتبار من يقول بفسخ البيع في وقت النداء]

و من يقول بالفسخ اعتباره هو أن يقول جميع أفعال العبادات أضافها إلى العباد إلا عبادتين العبادة الواحدة الصوم فأضافه إلى نفسه و العلة في ذلك أنها صفة صمدانية سلبية لا تنبغي إلا لله من حيث ذاته لا من حيث كونه إلها و كل ما عدا ذات الحق فإنه متغذ بالغذاء الذي يليق به مما يكون في استعماله بقاء ذلك المتغذي و العبادة الثانية الصلاة فإنه «قال قسمت الصلاة بيني و بين عبدي بنصفين فنصفها لي و نصفها لعبدي» فدل هذا الحديث على صحة ما يملكه العبد فإنه أضاف نصف الصلاة إلى نفسه تعالى و أضاف نصفها إلى عبده فهو و إن كان عبده فهو مالك لما أضافه اللّٰه إليه فهو بالنظر إلى ما أضافه إليه في الصلاة غير مملوك فقال بفسخ البيع و معنى فسخ البيع أنه لا يضيف إلى اللّٰه في هذه الحالة ما هو مضاف إليه فإن في ذلك منازعة الحق حيث أضاف أمرا إليك فرددته أنت عليه و هذا سوء أدب فأي مصل رد على اللّٰه هذا النصف الثاني الذي أضافه إلى العبد و ملكه إياه في حال الصلاة فهو بيع مفسوخ و لهذا قال تعالى في هذا الحال ﴿وَ ذَرُوا الْبَيْعَ﴾ [الجمعة:9] يقول مرادي منكم في هذه الحال أن يكون نصف الصلاة لكم فالموفق هو الذي يتأدب مع اللّٰه في كل حال



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