The Meccan Revelations: al-Futuhat al-Makkiyya

Volume number (out of 37): [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 1522 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

الحاضر هو المقيم على عقده الذي ربط عليه من آبائه و مربيه ثم عقل و رجع إلى نفسه و استقل هل يبقى على عقده ذلك أو ينظر في الدليل حتى يعرف الحق فمن قائل يكفيه ما رباه عليه أبواه أو مربيه و يشتغل بالعمل فإن النظر قد يخرجه إلى الحيرة فلا يؤمن عليه فهو الذي قال بالتيمم عند عدم الماء و قد قدمنا أن الماء هو العلم للاشتراك في الحياة به فإن هذا الحاضر الدليل معدوم عنده على الحقيقة فإنه لا يرى مناسبة بين اللّٰه و بين خلقه فلا يكون الخلق دليلا ساد على معرفة ذات الحق فبقاؤه عنده على تقليده أولى

[عدم التقليد في العقد و عدم النظر في الدليل]

و من قال لا يجوز له التيمم و إن عدم الماء يقول لا يقلد و إن لم ينظر في الدليل فإن الايمان إذا خالط بشاشة القلوب لزمته و استحال رجوعها عنه و لا يدري كيف حصل و لا كيف هو فهو علم ضروري عنده فقد خرج عن حكم ما يعطيه التقليد مع كونه ليس بناظر و لا صاحب دليل و على هذا أكثر الناس في عقائدهم فعدم الماء في حق هذا الحاضر هو عدم الأمان على نفسه أن يوقعه النظر في شبهة تخرجه عن الايمان

(باب في الذي يجد الماء و يمنعه من الخروج إليه خوف عدو)

اختلف العلماء فيمن هذه حالته فمن قائل يجوز له التيمم و به أقول و من قائل لا يتيمم

(وصل اعتباره في الباطن)

الخوف من البحث عن الدليل لينظر فيه ليؤديه إلى العلم بالمدلول جهل بعين الدليل أنه دليل فلا بد من أحد الأمرين إما أن يقلد أحدا في أن هذا دليل على أمر ما يعينه له أو يفتقر إلى نظر و فكر فيما ينبغي أن يتخذه دليلا على معرفة اللّٰه فإن كان الأول فليبق على تقليده في معرفة اللّٰه و هو الذي يقال له تيمم و من قال لا يجوز له التيمم قال إن هذا الخوف لا يلزمه أن لا ينظر فلينظر لا و لا بد

(باب الخائف من البرد في استعمال الماء)

اختلف العلماء فيمن هذه حاله فمن قائل بجواز التيمم إذا غلب على ظنه أنه يمرض إن استعمل الماء و من قائل لا يجوز له التيمم و بالأول أقول

(وصل اعتبار ذلك في الباطن)



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


Please note that some contents are translated from Arabic Semi-Automatically!