The Meccan Revelations: al-Futuhat al-Makkiyya

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(وفق مخطوطة قونية)

﴿وَ لاٰ يُحِيطُونَ بِهِ عِلْماً﴾ [ طه:110]

[معقولية القدم و الهرولة]

و ما نقول أراد بنسبة القدم ما عينته المنزهة على زعمها و اقتصرت عليه فجاء بالهرولة لإثبات القدمية و أقامه مقام الخف للقدم في إزالة الاشتراك المتوهم فانتقل التنزيه إلى الهرولة من القدم و قد كان القائل بالتنزيه مشتغلا بتنزيه القدم فلما جاءت الهرولة انتقل التنزيه إليها كما انتقل حكم طهارة القدم إلى الخف فنزه العبد ربه عن الهرولة المعتادة في العرف و إنها على حسب ما يليق بجلاله سبحانه فإنه لا يقدر أن لا يصفه بها إذ كان الحق أعلم بنفسه و قد أثبت لنفسه هذه الصفة فمن رد نسبتها إليه فليس بمؤمن و لكن الذي يجب عليه أن يرد العلم بها إلى اللّٰه أعني علم النسبة و أما معقولية الهرولة فما خاطب أهل اللسان إلا بما يعقلونه فالهرولة معقولة و صورة النسبة مجهولة و كذلك جميع ما وصف به نفسه مما توصف به المحدثات

[جواز انتقال الطهارة من محل إلى آخر]

و ليس الغرض مما ذكرنا إلا جواز انتقال الطهارة من محل إلى محل آخر بضرب من المناسبة و الشبه و إنما قلنا بالجواز لا بالوجوب فإن الوجوب يناقض الجواز و لصاحب الخف أن يجرد خفه و يغسل رجليه شرعا أو يمسحها بالماء على ما يقتضيه مذهبه في ذلك و لا مانع له من ذلك و كذلك هذا العاقل قد يبقى على تنزيهه للقدم و لا ينتقل إلى الهرولة و يزيلها عن هذه القدم بحكم ما يسبق إلى الفهم إذ أبين إن القدم ما تشبه نسبتها إلى الحق نسبة أقدامنا إلينا من كل الوجوه فلهذا لم يتعلق الوجوب بالمسح و كان حكمه الجواز

(وصل)و أما من أجازه سفرا و منعه في الحضر

فذلك إذا كان التنزيه عملا فلا أثر له إلا في المتعلم السامع القابل فيسافر التنزيه من العالم المعلم إلى المتعلم على راحلة التلفظ و الكلام بعبارة أو إشارة من المعلم إلى المتعلم

(وصل)و أما من منع جوازه على الإطلاق



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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