الفتوحات المكية

استعراض الفقرات الفصل الأول في المعارف الفصل الثانى في المعاملات الفصل الرابع في المنازل
مقدمات الكتاب الفصل الخامس في المنازلات الفصل الثالث في الأحوال الفصل السادس في المقامات
الجزء الأول الجزء الثاني الجزء الثالث الجزء الرابع

الفتوحات المكية - طبعة بولاق الثالثة (القاهرة / الميمنية)

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وما أحس بي من ذلك الجمع المكرم إلا أبو عبد الله بن المرابط كليمهم المبرز المقدم ولكن بعض إحساس والغالب عليه في أمري الالتباس وأما الشيخ المسن المرحوم جراح فكنت قد تكاشفت معه على نية في حضرة عليه ولم أزل بعد مفارقتي حضرة الولي أبقاه الله له ذاكرا ولأحواله شاكرا وبمناقبه ناطقا ولآدابه عاشقا وربما سطرت من ذلك في الكتب ما سارت به الركبان وشهر في بعض البلدان وقد وقف الولي عليه ورأى بعض ما لديه فقد ثبت له الود مني قبل سبب يقتضيه وغرض عاجل أو آجل يثبته في النفس ويمضيه ثم كان الاجتماع بالولي تولاه الله بعد ذلك بأعوام في محله الأسنى وكانت الإقامة معه تسعة أشهر دون أيام في العيش الأرغد الأهنى عيش روح وشبح وقد جاد كل واحد منا بذاته على صفيه وسمح ولي رفيق وله رفيق وكلاهما صديق وصديق فرفيقه شيخ عاقل محصل ضابط يعرف بأبي عبد الله بن المرابط ذو نفس أبية وأخلاق رضية وأعمال زكية وخلال مرضية يقطع الليل تسبيحا وقرآنا ويذكر الله على أكثر أحيانه سرا وإعلانا بطل في ميدان المعاملات فهم لما يرد به صاحب المنازل والمنازلات منصف في حاله مفرق بين حقه ومحاله وأما رفيقي فضياء خالص ونور صرف حبشي اسمه عبد الله بدر لا يلحقه خسف يعرف الحق لأهله فيؤديه ويوقفه عليهم ولا يعديه قد نال درجة التمييز وتخلص عند السبك كالذهب الإبريز كلامه حق ووعده صدق فكنا الأربعة الأركان التي قام عليها شخص العالم والإنسان فافترقنا ونحن على هذه الحال لانحراف قام ببعض هذه المحال فإني كنت نويت الحج والعمرة ثم أسرع إلى مجلسه الكريم الكرة فلما وصلت أم القرى بعد زيارتي الخليل الذي سن القرى وبعد صلاتي بالصخرة والأقصى وزيارة سيدي سيد ولد آدم ديوان الإحاطة والإحصاء أقام الله في خاطري أن أعرف الولي أبقاه الله بفنون من المعارف حصلتها في غيبتي وأهدى إليه أكرمه الله من جواهر العلم التي اقتنيتها في غربتي فقيدت له هذه الرسالة اليتيمة التي أوجدها الحق لأعراض الجهل تميمة ولكل صاحب صفي ومحقق صوفي ولحبيبنا الولي وأخينا الذكي وولدنا الرضي عبد الله بدر الحبشي اليمني معتق أبي الغنائم ابن أبي الفتوح الحراني وسميتها رسالة الفتوحات المكية في معرفة الأسرار المالكية والملكية إذ كان الأغلب فيما أودعت هذه الرسالة ما فتح الله به علي عند طوافي ببيته المكرم أو قعودي مراقبا له بحرمه الشريف المعظم وجعلتها أبوابا شريفة وأودعتها المعاني اللطيفة فإن الإنسان لا تسهل عليه شدائد البداية إلا إذا عرف شرف الغاية ولا سيما إن ذاق من ذلك عذوبة الجنى ووقع منه بموقع المني فإذا حصر الباب البصر تردد عليه عين بصيرة الحكيم فنظر فاستخرج اللآلي والدرر ويعطيه الباب عند ذلك ما فيه من حكم روحانية ونكت ربانية على قدر نفوذه وفهمه وقوة عزمه ووهمه واتساع نفسه من أجل غطسه في أعماق بحار علمه‏

لما لزمت قرع باب الله *** كنت المراقب لم أكن باللاهي‏

حتى بدت للعين سبحة وجهه *** وإلى هلم لم تكن إلا هي‏

فاحطت علما بالوجود فما لنا *** في قلبنا علم بغير الله‏

لو يسلك الخلق الغريب محجتي *** لم يسألوك عن الحقائق ما هي‏

فلنقدم قبل الشروع في الكلام على أبواب هذا الكتاب بابا في فهرست أبوابه ثم أتلوه بمقدمة في تمهيد ما يتضمنه هذا الكتاب من العلوم الإلهية الإسرارية وعلى أثرها يكون الكلام على الأبواب على حسب ترتيبها في باب الفهرست إن شاء الله تعالى والله يَقُولُ الْحَقَّ وهُوَ يَهْدِي السَّبِيلَ انتهى الجزء الأول والحمد لله يتلوه الجزء الثاني إن شاء الله تعالى وصلى الله على محمد وعلى آله الطاهرين‏


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[الباب: 560] - فى وصية حكمية ينتفع بها المريد السالك والواصل ومن وقف عليها إن شاء الله تعالى (مقاطع فيديو مسجلة لقراءة هذا الباب)

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